________________ जीतकल्प सभाष्य 411. छत्तीसगुणसमण्णागतेण तेण वि अवस्स कातव्वा। आलोयण निंदण' गरहणा य ण पुणो यो बितियं ति॥ 412. किं कारणमालोयण, एव पयत्तेण होति दातव्वा?। भण्णति सुणसू इणमो, आलोयंतस्स जे उ गुणा॥ 413. आयार विणयगुण कप्पदीवणा अत्तसोहि उजुभावो। अज्जव मद्दव लाघव, तुट्ठी पल्हायजणणं च // 414. पव्वज्जादी आलोयणा तु तिण्हं चतुक्किय विसोही। ___जह अप्पणो तह परे, कातव्वा उत्तिमट्ठम्मिः / / 415. तिण्हं ती णाणादी, दव्वादि चउक्कगं मुणेतव्वं। जो अतियारो तेसू, कत आलोएति' तं सव्वं // 416. णाणे वितहपरूवण, जं वा आसेवितं तदट्ठाए। चेतणमचेतणं वा, दव्वे खेत्तादिसु इमं तु॥ 417. णाणणिमित्तं अद्धाणमेति ओमे वि' अच्छति तदट्ठा। णाणं च 'आगमेस्सइ, कुणती'५० परिकम्मणं देहे // 418. पडिसेवति विगतीओ, मेहादव्वे१२ व एसती पियति। वायंतस्स व१३ किरिया, कता तु पणगादिहाणीए / / 419. एमेव दंसणम्मि वि, सद्दहणा णवरि तत्थ" णाणत्तं / एसण इत्थीदोसे, वतं ति चरणे सिया से वा५ // 1. निंद (ला)। के साथ मिलती है२.वि (पा, ला)। नाणनिमित्तं आसेवियं तु वितहं परूवियं वावि। 3. व्य (4298), नि (3862) तथा प्रकी (2895) में इस चेतणमचेतणं वा, दव्वं सेसेसु इमगं तु॥ गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है 9. य (व्य 4304), व (मु, ब, ला)। परसक्खिगा विसोधी, सुट्ठ वि ववहारकुसलेणं। 10. मेस्सं ति कुणति (व्य)। 4. व्य 4301, नि 3865, पंक 1310, मूला 387 / ११.नि 3868 / 5. पाव' (पा, ला, मु)। 12. मेझं दव्वं (व्य 4305), मज्झे दव्वे (नि 3869) / 6. मटुंति (नि 3866), उत्त' (व्य 4302) / 13. वि (नि)। 7. आलोए (ला)। 14. तत्थं (ला)। 8. व्य (4303) एवं नि (3867) में यह गाथा कुछ अंतर १५.व्य 4306, नि 3870 /