________________ पाठ-संपादन-जी-१ 402. भावो च्चिय एत्थं तू, संलिहियव्वो सदा पयत्तेणं। तेणाऽऽयट्ट साहे, दिटुंतोऽमच्च-कोंकणगे॥ 403. रण्णा कोंकणगाऽमच्चा, दो वि णिव्विसया कता। दोद्धिए' कंजियं छोढुं, कोंकणो' तक्खणा गतो॥ 404. 'भंडी बइल्लए" काए, अमच्चो जा भरेति' तु। ताव पुण्णं तु पंचाहं, णलिए णिधणं गतो // 405. एवं जेहिं तु संलीढो, भावो ते तू साहगा। असंलीढे ण साति, अमच्चो इव ते खलु॥ 406. इंदियाणि कसाए य, गारवे य किसे कुण। 'ण चेयं० ते पसंसामो, किसं साधु! सरीरगं॥ एवं परिच्छिऊणं, जदि१ सुद्धो ताहें तं पडिच्छंति। ताहे य अत्तसोधिं, करेति विधिणा इमेणं तु॥ 408. आयरियपादमूलं, गंतूणं सति परक्कमे१२ ताहे। सव्वेण अत्तसोधी, 'परसक्खीयं तु कातव्वा // 409. जह सुकुसलो वि वेज्जो, अण्णस्स कहेति अप्पणो वाधी"। वेज्जस्स य सो सोतुं, तो परिकम्म५ समारभतिः // 410. 'जाणतेण वि एवं 17, पायच्छित्तविधिमप्पणो८ णिउणं। तह वि य पागडतरगं, आलोएतव्वगं होति // ... 1. दोडिए (व्य 4292) / 11. जहि (ब)। 2. कोंकणा (पा, ला)। .. 12. परि (ब, ला)। 3. नि 3856, कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.४। 13. कायव्या एस उवदेसो (व्य 4295, नि 3859) / 4. भंडिओ बहिलए (पा), भणिओ बहिलए (ला), 14. वाहिं (व्य 4296) / . हिंडितो बहिले (नि 3857) / 15. पडिक' (व्य, नि 3860) / 5. भरति (ला)। 16. ओनि (795) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है६. णेलिए (पा, ला), पुण्णे (नि)। सोऊण तस्स विज्जस्स, सो वि परिकम्ममारभइ। 7. व्य 4293 / 17. “एयं (ब), एवं जाणंतेण वि (ओनि 796) / 8. तु (ब)। 18. "प्पणा (ब)। 9. कुरु (व्य ४२९४,नि 3858) / 19. सम्म (ओनि)। - १०.णो वयं (नि)। 20. व्य 4297, नि 3861 /