________________ पाठ-संपादन-जी-१ 51 384. सयं चेव चिरावासो', वासावासे तवस्सिणं / तेणरे तस्स विसेसेणं, वासासु पडिवज्जणं / / 385. असिवोमादीएसु तु, पडिवजंते इमे भवे दोसा। संजम-आयविराधण, आणादीया य दोसा उ // 386. असिवादीहि वहंता, तं उवगरणं व संजता चत्ता। उवहिं विणा य छड्डण, चत्तो सो पवयणं चेव // 387. एगो संथारगतो, बितिओ संलेहें ततिय पडिसेधो। अपहुच्चंतऽसमाही, तस्स व तेसिं च असमाही / 388. हवेज्ज जदि वाघातो, बितियं तत्थ ठावते। चिलिमिलिं' अंतरे काउं', बहिं वंदावए जणं // 389. अणपुच्छाएँ गणस्सा, पडिच्छए तं जती गुरू गुरुगा। . . चत्तारि तु विण्णेया, गच्छमणिच्छंतर जं पावे // 390. पाणगादीणि१२ जोग्गाणि,जाणि तस्स३ समाहिते। अलंभे तस्स जा हाणी४, परिक्केसो य जायणे१५ // 391. असंथरं अजोग्गो वा, जोगवाही व ते१६ भवे। एसणादिपरिक्केसो१७ जा य तस्स विराधणा८ // 392. अपरिच्छणम्मि गुरुगा, दोण्ह वि अण्णोण्णगं जधाकमसो। होति विराहण दुविधा, एक्को एक्को व जं पावे // 1. चिरं वासो (व्य 4277, नि 3845) / 2. तेणं (मु, ब, ला)। 3. "ज्जणा (व्य)। 4. य (ब)। ५.व्य 4279, तु.नि 3847 / 6. असतीए (व्य 4280), नि (3848) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है अण्णायपुच्छ असमाही, तस्स व तेसिंच असती य। 7. मिणि (व्य 4281), "मिणी (नि 3849) / 8. चेव (व्य, नि)। 9. गच्छस्स (व्य 4282) / १०.व (व्य, ला)। 11. च्छंते (पा, ब)। 12. "दीण (पा, ब)। 13. तत्थ (नि)। 14. ठाणा (नि 3850) / १५.व्य 4283 / 16. ज्जइ (पा, ब), जइ (मु)। 17. “णाए परि (व्य 4284) / 18. नि 3851 / १९.व्य 4285 /