________________ जीतकल्प सभाष्य . 375. एक्कं व दो व तिण्णि व, उक्कोसं बारसेव वासाई। संविग्गपादमूलं, परिमग्गेज्जा अपरितंतो / / संविग्गदुल्लभं खलु, कालं तु पडुच्च मग्गणा एसा। ते खलु गवेसमाणे, खेत्ते काले य परिमाणं // 377. 'तेण य" संविग्गेणं, पवयणगहितत्थसव्वसारेणं। णिज्जवगेण समाधी, कातव्वा उत्तिमट्ठम्मि // 378. एगम्मि उ णिज्जवगे, विराधणा होति कज्जहाणी य। सो सेहा वि य चत्ता, पावयणं चेव उड्डाहो // 379. तस्सट्ठगतोभासण, सेहादिअदाणे सो ‘य परिचत्तो"। 'दातुं व अदाउं वा", हवंति सेहा वि णिद्धम्मा // 380. कूवति" अदिज्जमाणे, मारेंति बल ति पवयणं चत्तं। सेहा य जं.२ पडिगता, जणे अवण्णं पगासेंति // 381. सयमेवाऽऽभोए]", अतिसेसि णिमित्तिओ५ व आयरिओ। देवयणिवेदणेण व, जह नगरे कंचणपुरम्मि॥ 382. कंचणपुर गुरुसण्णा, देवयरुयणा'६ य पुच्छ कहणा य। __पारणग खीर रुहिरं, आमंतण संघणासणया // 383. 'अहवा वि सो व्व परतो 18, पारगमिच्छंत९ ऽपारगे गुरुगा। असती. खेमसुभिक्खे, णिव्याघातेण पडिवत्ती॥ 1. वरिसाइं (नि 3838) / 9. दातु व्व (ब)। २.व्य 4270 / १०.व्व (पा, ला)। 3. व्य 4271, नि 3839 / ११.कूयति (व्य 4275) / 4. तम्हा (व्य 4272, नि 3840) / 12. सं (ला),जे (व्य)। 5. इस गाथा के बाद पा और ला प्रति में 'संविग्गे त्ति दारं' 13. पदाणे वि (नि 3843) / का उल्लेख है। 14. एत्तु (पा)। 6.4 (पा, ब)। १५.णिमित्तं यो (ला, पा)। ७.व्य 4273, नि (3841) में इस गाथा के स्थान पर पाठ- 16. रुवणा (व्य 4278) / भेद के साथ निम्न गाथा मिलती है 17. व्य और नि (3846) में इस गाथा में क्रम-व्यत्यय है, __ एगे उ कज्जहाणी, सो वा सेहा य पवयणं चत्तं / कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 2 / तव्वण्णिए निमित्ते, पत्तो चत्तो य उड़ाहो॥ 18. परतो सयं व णच्चा (व्य 4276), नि 3844 / / 8. परिच्चत्तो (व्य 4274), नि 3842 / 19. "मिच्छंता (पा)।