________________ पाठ-संपादन-जी-१ 366. तम्हा पंच व छ स्सत्त, वावि जोयणसते समहिए वा। गीतत्थपादमूलं, परिमग्गेज्जा अपरितंतो॥ 367. एक्कं व दो व तिण्णि' व, उक्कोसं बारसेव वासाई। गीतत्थपादमूलं, परिमग्गेज्जा अपरितंतो॥ 368. गीतत्थदुल्लभं खलु, 'पडुच्च कालं तु" मग्गणा एसा। ते खलु गवेसमाणे, खेत्ते काले य परिमाणं / / 369. . तेण य गीतत्थेणं, पवयणगहितत्थसव्वसारेणं / णिज्जवगेण समाधी, कातव्वा उत्तिमट्ठम्मि / 370. 'एवमसंविग्गे वी'६, पडिवजंतस्स होंति चउगुरुगा। किं कारणं तु? तहियं', जम्हा दोसा हवंति इमे॥ 371. णासेति असंविग्गो, चउरंगं सव्वलोगसारंगं / नट्ठम्मि य चउरंगे, ण हु सुलभं होति चउरंग // 372. आहाकम्मिय पाणग, पुप्फा सीया' य बहुजणे णातं / सेज्जा संथारो वि य, उवधी वि य होति अविसुद्धो॥ 373. एते अण्णे य तहिं, बहवे दोसा सपच्चवाया य। एतेण कारणेणं, असंविग्गे ण कप्पति परिण्णा // तम्हा पंच व छ स्सत्त, वा वि जोयणसते समहिए वा२। संविग्गपादमूलं, परिमग्गेज्जा. अपरितंतो॥ 1. या (ब),गाथा का पूर्वार्द्ध व्य (4261) और नि (3830) 6. असंविग्गसमीवे वि (व्य 4265) / में इस प्रकार है 7. गुरुगा उ (व्य)। ___पंच व छस्सत्तसते, अधवा एत्तो वि सातिरेगतरे। 8. जहियं (व्य)। २.ति वि (पा),तिसि (ला)। 9. व्य 4266, नि 3834 / 3. वासाणि (व्य 4262), वरिसातिं (नि 3831) / १०.सेया (व्य 4267), सिंगा (नि 3835) / . 4. कालं तु पडुच्च (व्य 4263, नि 3832) / 11. य पच्च' (व्य 4268, नि 3836) / ५.नि 3833, व्य 4264, ला और पा प्रति में गाथा के अंत १२.व्य (4269) तथा नि (3837) में गाथा का पूर्वार्द्ध में अग्गीय त्ति' ऐसा उल्लेख मिलता है। यह विषय की इस प्रकार हैसमाप्ति का संकेत है। .. पंच व छस्सत्तसया अहवा एत्तो वि सातिरेगतरे।