________________ जीतकल्प सभाष्य 356. अग्गीतसगासम्मी, भत्तपरिणं तु जो करेज्जाहि। चतुगुरुगा तस्स भवे, किं कारण? जेणिमे दोसा॥ 357. णासेति अगीतत्थो, चउरंगं सव्वलोगसारंगं / नट्ठम्मि य चतुरंगे, ण हु सुलभं होति चतुरंग' / / 358. किं पुण तं चउरंगं, जं णटुं दुल्लभं पुणो होति? / माणुस्सं धम्मसुती, सद्धा तह' संजमे विरियं / 359. किह णासेति अगीतो, 'पढम-बितियएहिँ" अद्दितो सो उ। ओभासे कालियाए', तो निद्धम्मो त्ति छड्डेज्जा // . . 360. अंतो वा बाहिं वा, दिया' व रातो व सो विवित्तो तु। अट्ट-दुहट्ट-वसट्टो, पडिगमणादीणि कुज्जाहि॥ 361. मरिऊण अट्टझाणो', 'गच्छेज्ज व तिरिय-वणसुरेसुं० वा। संभरिऊण य वेरं, पडिणीयत्तं करेज्जाहि॥ 362. अहवावि सव्वरीए, मोयं देज्जाहि जायमाणस्स। __सो डंडियादि१२ होज्जा, रुट्ठो साहे णिवादीणं // 363. कुज्जा कुलादिपत्थारं, सो वा रुट्ठो तु गच्छे मिच्छत्तं / तप्पच्चयं तु दीहं, भमेज्ज संसारकंतारं // 364. सो 'दिवो य विगिंचिंतों, संविग्गेहिं तु अण्णसाधूहिं / आसासियमणुसिट्ठो५, मरणजढ पुणो वि पडिवण्णो॥ 365. एते अण्णे य 'बहू, तहियं दोसा'१६ सपच्चवाया य। एतेहि कारणेहिं, अग्गीते ण कप्पति परिण्णा // १.व्य 4251 / २.व्य ४२५२,नि 3826, पंक 2389 / 3. तव (व्य 4253) / 4. बितिएहि (मु)। 5. कालिमाए (ला, मु)। ६.व्य 4254 / ७.दिवा (व्य 4255) / 8. अट्टज्झाणो (ब)। 9. तिरिया (ब)। १०.गच्छे तिरिएसु वणयरेसुं (व्य 4256) / ११.रुट्ठो (व्य)। 12. दंडि (व्य 4257) / 13. च (व्य 4258) / 14. उ विविंचिय दिट्ठो (व्य 4259) / 15. “सट्ठो (मु, ब, ला)। 16. तहिं बहवे दोसा य (व्य 4260, नि 3829) / -