________________ पाठ-संपादन-जी-१ 346. अण्णा दोण्णि समाओ, चउत्थ काऊण पारें आयामं। कंजीएणं तु ततो, अण्णेक्कसमं 'दुहा काउं'२॥ 347. तत्थेक्कं छम्मासं, चतुत्थ छटुं च काउ पारेति। आयामेणं णियमा, बितिए छम्मासिय विगिटुं॥ 348. अट्ठम दसम दुवालस, 'काउं पारे तमेव आयामं५ / अण्णेक्कहायणं तू, कोडीसहितं तु काऊणं // 349. आयाम-चउत्थादी, काऊण अपारिए पुणो अण्णं / जं कुणयाऽऽयामादी, तं भण्णति कोडिसहितं तु // आयंबिल उसिणोदेण पारें हावंत' आणुपुव्वीए। . जह दीव-तेल्ल-वत्ती, खओ समं तह सरीरायु // 351. बारसमम्मि य वरिसे, जे मासा उवरिमा उ चत्तारि / पारणगे. तेसिं तू, एक्कंतरगं इमं धारे // 352. तेल्लस्स उ गंडूसं, णीसढे जाव खेलसंवुत्तो। तो णिसिरे खेलमल्ले१२, किं कारण? गल्लधरणं तु९२ // 353. लुक्खत्ता मुहतं, मा हु खुभेज्ज त्ति तेण धारेति। 'माऽह'१३ णमोक्कारस्सा, अपच्चलो सो 'हु होज्जाहि // * 354. उक्कोसिगा तु एसा, संलेहा मज्झिमा जहण्णा य। संवच्छर छम्मासा, एमेव य मास-पक्खेहिं५ / / 355. एत्तो एगतरेणं, संलेहेणं खवेत्तु अप्पाणं / कुज्जा भत्तपरिणं, इंगिणि पाओवगमणं च // 1. पारि (ब, व्य)। 2. इमं कुणति (व्य 4243) / 3. आयंबिलेण (व्य 4244) / . 4. "सिए (ब)। 5. काऊ (ब), काऊणायंबिलेण पारेति (व्य 4245) / 6. गाथाओं के क्रम में व्य में यह गाथा नहीं है। 7. हावंतो (ला, ब, पा)। 8. व्य 4246 / 9. उ (ब)। 10. धीरे (पा, ब)। 11. मत्ते (पा, मु)। 12. गाथा 351 और ३५२-इन दोनों गाथाओं के स्थान पर (व्य 4247) में निम्न गाथा हैपच्छिल्लहायणे तू, चउरो धारेंतु तेल्लगंडूसं। निसिरे खेल्लमल्लम्मि, किं कारण गल्लधरणं तु॥ 13. हु (व्य 4248) / 14. हविज्जाहि (व्य, ला)। 15. व्य 4249 / १६.वा (व्य 4250) /