________________ जीतकल्प सभाष्य 337. सिणेहो पेलवी होती, णिग्गते उभयस्स वि। आहच्च वावि वाघाते, णो सेहादि' विउब्भमोरे // 338. दव्वसिती भावसिती', दव्वसिती होति दारुणिस्सेणी। भावसिति संजमो जा, तीय वि भंगा इमे होंति // 339. संजमठाणाणं कंडगाण लेस्साठितीविसेसाणं / उवरिल्लपरक्कमणं, भावसिती केवलं जाव // 340. भावसिती अहिगारो, विसुद्धभावेण तत्थ ठातव्वं / / ण हु उड्डगमणकज्जे, हेट्ठिल्लपदं पसंसंति // .. 341. संलेहणा उ तिविधा, जहण्ण मज्झा तहेव उक्कोसा। छम्मासा वरिसं वा, बारसवरिसा जहाकमसो० // 342. चिट्ठतु जहण्ण मज्झा, उक्कोसं तत्थ ताव वोच्छामि। जं संलिहिऊण मुणी, साहेती 'अप्पणो अटुं'१२ // 343. चत्तारि विचित्ताई, विगतीणिज्जूहिताइँ चत्तारि। दोसु चउत्थाऽऽयामं, अविगिट्ठ विगिट्ठ कोडेक्कं // 344. संवच्छराणि चउरो, तवं५ विचित्तं चउत्थमादीयं / काऊण सव्वगुणितं, पारेती उग्गमविसुद्धं // 345. पुणरवि चउरण्णा तू, विचित्त काऊण विगतिवज्जं तु। पारेति सो महप्पा, णिद्धं पणियं 'च वजेति.१७॥ 1. स होइ (मु,ब)। 9. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'सिति त्ति गतं' 2. व्य 4235, नि 3821 / का उल्लेख है। 3, 4. सीती (ला, ब, पा)। 10. तु. व्य 4238 / व्य (4236), तथा नि (3822) में इस गाथा के 11. चिटुंतु (ब)। स्थान पर निम्न गाथा मिलती है 12. अत्तणो अत्थं (व्य 4239) / दव्वसिती भावसिती, अणुयोगधराण जेसिमुवलद्धा। 13. व्य (4240) तथा नि (3824) में गाथा का उत्तरार्ध न हु उड्डगमणकज्जे, हेट्ठिल्लपदं पसंसंति // इस प्रकार है६. लेसा (मु)। एगंतरमायाम णातिविगिद्धेऽविगिट्टे य। व्य 4237, नि 3823 / 14. राई (मु, ब)। 8. गा. 338 और 340 के स्थान पर नि और व्य में एक 15. होति (व्य 4241) / ही गाथा है। देखें गा. 338 के टिप्पण की गाथा। 16. रण्णे (व्य 4242) / 17. ववहोइ (ला)।