________________ पाठ-संपादन-जी-१ 307. एवं सदयं दिज्जति, जेणं सो संजमे थिरो होति / __ण य सव्वहा ण दिज्जति, अणवत्थपसंगदोसाओ / 308. तिलहारगदिटुंतो, पसंगदोसेण जह वधं पत्तो। जणणी य थणच्छेदं, पत्ता अणिवारयंती तु // 309. णिब्भत्थणाइ बितियाय, वारितो जीवितादि आभागी। नेव य थणछेदादी, पत्ता जणणी य अवराहं // 310. इय अणिवारितदोसा, संसारे दुक्खसागरमुवेंति / विणियत्तपसंगा पुण, करेंति संसारवोच्छेदं / 311. एवं धरती सोही, देंत करेंता वि एव दीसंति। जं पि य दंसण-णाणेहि, भाति तित्थं ति तं सुणसु // 312. एवं तु' भणंतेणं, सेणियमादी वि थाविया समणा। समणस्स 'उ सुत्तम्मी'', नत्थी णरगेसु उववातो॥ 313. जं पि य हु एक्कवीसं, वाससहस्साइँ होहिती तित्थं / . तं मिच्छा सिद्धी वा, सव्वगतीसुं पि' होज्जाहि // अण्णं च इमो दोसो, पच्छित्ताभावतो तु पावति हु। जह न वि चिट्ठति चरणं, तत्थ इमं गाहमाहंसु // ___315. पायच्छित्ते असंतम्मि, चरित्तं पि११ ण चिट्ठए१२ / चरित्तम्मि असंतम्मि, तित्थे णो सचरित्तया॥ 316. 'अचरित्तयाए तित्थे, णेव्वाणं पि२३ ण गच्छती। णिव्वाणम्मि" असंतम्मि, सव्वा दिक्खा णिरत्थिगा५ // 314. १.व्य 4208 / 8. य जुत्तस्स य (व्य 4213) / २.व्य (4209) में इस गाथा के स्थान पर निम्न गाथा 9. व (व्य 4214) / मिलती है 10. गाथाओं के क्रम में व्य में यह गाथा नहीं है। दिद्वैतो तेणएण, पसंगदोसेण जध वहं पत्तो। 11. तु (पंक 2312) / पावंति अणंताई, मरणाइ अवारियपसंगा॥ 12. वट्टति (व्य 4215), चिट्ठती (नि 6678) / ३.व्य 4210, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.१। 13. रित्ताय तित्थस्स निव्वाणम्मि (व्य 4216), तित्थम्मि ४.खलु (व्य 4211) / असंतम्मि व्वाणं तु (पंक 2313), चरित्तम्मि 5. जाति (पा, ला)। असंतम्मि निव्वाणं पि (नि 6679) / ६.व्य 4212 / 14. णं पि (ब)। 7. ते (पा, ब, ला)। १५.निरत्थया (व्य)।