________________ जीतकल्प सभाष्य 297. जो तु 'धरेज्ज अवटुं", असंतविभवो सयं। कुणमाणो य कम्मं तु, णिव्विसे' करिसावणं // 298. अणमप्पेण कालेणं, सो तगं तु विमोयए। दिलुतेसो भणितो, अत्थोवणओ इमो तस्स // 299. संतविभवेहि तुल्ला, धिति-संघयणेहि जे उ संपण्णा। ते आवण्णा सव्वं, वहंति निरणुग्गहं धीरा' / 300. संघतण-धितीहीणा, असंतविभवेहि होंति तुल्ला तु। निरवेक्खो जदि तेसिं, देति तओ ते ‘ण सुज्झति // 301. ते तेण परिच्चत्ता, लिंगविवेगं तु काउ वच्चंति। तित्थुच्छेदो ‘एवं, अप्पा वि य चत्तों इणमो उ" // 302. ते उद्वेत्तु पलाणा, पच्छा एकाणिओ तओ होति। ताहे किं :तु करेतू"?, एवं अप्पा परिच्चत्तो // 303. सावेक्खो पवयणम्मिर, अणवत्थपसंगवारणाकुसलो। चारित्तरक्खणट्ठार, अव्वोच्छित्तीय तु विसुज्झे॥ 304. कल्लाणगमावण्णे, अतरंत जहक्कमेण३ काउं जे। दस कारेंति चतुत्थे, तब्बिउणाऽऽयंबिलतवे य" // 305. एक्कासण५ पुरिमड्ढा, णिव्विगती चेव बिगुणबिगुणाओ। पत्तेयाऽसह दाण६, कारेंति व सण्णिगासं ति॥ 306. चउ-तिग८-दुगकल्लाणा, एगं कल्लाणगं च कारिंति। जं जो उ तरति तं तस्स", देति असहुस्स झोसेंति // 1. धारेज्ज वद्धतं (व्य 4199) / (4203) में एक ही गाथा मिलती है। 2. निवेसे (व्य)। 11. "म्मी (पा, ब, ला)। 3. गाथा 297 एवं 298 में अनुष्टुप् छंद है। 12. णटुं (व्य 4204) / 4. व्य 4200 / 13. "मेणं (ला)। 5. व्य 4201 / 14. व (व्य 4205) / 6. विणस्संति (व्य 4202) / 15. सणा (पा, ला)। 7. अप्पा एगाणिय तेण चत्तो य (व्य 4203), 16. दाउं (व्य 4206) / "ऊ (ब, ला)। 17. तु (ला, व्य)। 8. 4 (ब)। १८.ति (पा)। 9. करेतत्थ (पा)। 19. तस्सा (ला)। 10. 301 एवं ३०२-इन दो गाथाओं के स्थान पर व्य 20. व्य 4207 /