________________ पाठ-संपादन-जी-१ 287. छेदोवट्ठावणिए, पायच्छित्ता हवंति सव्वे वि।। थेराण जिणाणं पुण, मूलंतं अट्ठहा होति' // 288. परिहारविसुद्धीए, मूलंता अट्ट होंति पच्छित्ता। थेराण जिणाणं पुण, 'छव्विहमेतं चिय तवंतं" // आलोयणा विवेगे य, ततियं तु ण विज्जती। सुहुमम्मि संपराए, अहक्खाते तधेव य॥ 290. बकुस-पडिसेवगा खलु, इत्तिरि-छेदा य संजता दोण्णि। जा 'तित्थऽणुसज्जंती', अत्थि हु तेणं तु पच्छित्तं // -- 291. जदि अत्थि ण दीसंती, केइ 'करेंता उ भण्णती सुणसु"। दीसंतु उवाएणं, कुव्वंता तत्थिमं णातं // 292. जह धणिओ सावेक्खो, निरवेक्खो चेव होति दुविधो तु। धारणग संतविभवो, असंतविभवो य सो दुविधो॥ 293. संतविभवो तु जाहे, व मग्गितो ताहें देति तं सव्वं / जो पुण असंतविभवो, तस्स' विसेसो इमो होति॥ 294. निवेक्खों तिण्णि चयती, 'अत्ताण धणं च तह य२० धारणगं। सावेक्खो पुण रक्खति, अप्पाण धणं च धारणगं // 295. जो तू असंतविभवो, दब्भे घेत्तूण पडति पाडेणं१२ / सो अप्पाण धणं पि य, धारणगं चेव णासेति // 296. जो पुण सहती कालं, सो अत्थं लहति 'खखति यतं च। न किलिस्सति य सयं पी, एव उवाओ तु सव्वत्थ॥ १.व्य 4190 / 2. मूलं वा (पा)। ३.छव्यिध छेदादिवजं वा (व्य 4191) / 4. सुहम' (पा, ब, ला), सुहुमे य (व्य 4192) / 5. इत्तरि (व्य 4193) / 6. सज्जंति इ (पा), तित्थं अणु (ला, ब, मु)। 7. करेंतत्थ धणियदिटुंतो (व्य 4194) / 8. मग्गति (व्य 4195) / 9. तत्थ (व्य)। 10. अप्पाण धणागमं च (व्य 4196) / 11. दब्भं (मु), पाए (व्य 4197) / 12. पाडेण (ब)। 13. 'क्खती (व्य 4198) / 14. किलस्सति (ब)।