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________________ जीतकल्प सभाष्य 278. सेस अट्ठहऽणुसज्जति, जा तित्थं णव दसे' य लिंगादी। 'चोदे तं" पि ण दीसति', एव भणंत गुरू भणति॥ 279. दोसु तु वोच्छिण्णेसू, अट्ठविहं देंतया करेंता य। ण य केई दीसंती, 'एव भणंतस्स चतुगुरुगा'५॥ 280. दोसु तु वोच्छिण्णेसू, अट्ठविह" देंतया करेंता य। पच्चक्खं दीसंती , जहा तहा मे णिसामेहि॥ 281. 'पंच णियंठा भणिता", पुलाग बगुसा कुसील निग्गंठा। तह य सिणाया तेसिं, पच्छित्त जहक्कम वोच्छं // . . 282. आलोयण पडिकमणे, मीस विवेगे तहा विओसग्गे। तत्तो य तवे छट्टे२, पच्छित्त पुलाग छऽप्पेते // 283. बगुस-पडिसेवगाणं, पायच्छित्ता हवंति सव्वे वि। थेराण भवे कप्पे, जिणकप्पे५२ अट्ठधा होति // .. 284. आलोयणा विवेगो वा५, णियंठस्स दुवे भवे। विवेगो य सिणातस्स, एमेया'६ पडिवत्तिओ७ // 285. पंचव संजता खलु, नायसुतेणं कहिय जिणवरेणं। सामाइसंजतादी, पच्छित्तं तेसि वोच्छामि // 286. सामाइसंजताणं, पच्छित्ता छेद-मूलरहितऽ8। थेराण जिणाणं पुण, तवगंत२९ छव्विधं होति // 1. दस (ला)। 2. चोदेत (पा)। 3. दीसदि (पा, ब, मु)। 4. भणते (ब)। 5. वदमाणे भारिया चउरो (व्य 4182) / 6. “णेसुं (व्य 4183) / 7. “विह (ब)। 8. दंसंती (ला, ब, पा)। 9. पंचेव नियंठा खलु (व्य 4184) / 10. सिणाओ (मु, ला)। 11. विउस्स' (व्य 4185) / 12. छेदे (मु)। 13. 4 (ला)। 14. व्य 4186 / 15. य (व्य 4187) / 16. एमेव या (पा, ला)। 17. "वत्तीओ (ब)। 18. कहिता (ब)। 19. इस गाथा का उत्तरार्ध (व्य 4188) में इस प्रकार है तेसिं पायच्छित्तं, अहक्कम कित्तइस्सामि। 20. च्छेद (पा, ब)। 21. तवमंतं (व्य 4189) /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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