________________ पाठ-संपादन-जी-१ 39 269. भुंजति चक्की भोगे, पासादे सिप्पिरयणणिम्मविते। तं दटुं' राईणं, अण्णेसिच्छा समुप्पण्णा // 270. अम्हे कारावेमो, पासादे एरिसे' त्ति इति तेहिं / चित्तकरा पेसविता, णिउणं लिहिण आणेह // 271. पासादस्सायणे मणहारितं तेहिँ चित्तकारेहिं'। लीलविहूणं णवरिं', आगारो होति सो चेव // 272. .जह रूवादिविसेसा, परिहीणा होति पागतजणस्स। ण य ते ण होंति गेहा, 'भुंजंति य तेसु ते भोगे'६ // 273. एमेव' य पारोक्खी, तदाऽणुरूवं तु सो व्व ववहरति / किं पुण ववहरितव्वं, पायच्छित्तं इमं दसहा॥ 274. आलोयण पडिकमणे, मीस 'विवेगे तहा विओसग्गे / तव छेद मूल अणवट्ठया य पारंचिए चेव // 275. एतुवरि भण्णिहिती, सवित्थरेणं तु आणुपुव्वीए। एतं पुण जह धरती, जं जत्था तं चिमाऽऽहंसु॥ 276. 'दस ता'११ अणुसज्जंती, जा चोद्दसपुव्वि पढमसंघयणे। तेणाऽऽरेणऽट्ठविहं, तित्थंतिम जाव दुप्पसभो२ // 277. दोसु तु वोच्छिण्णेसू, चोद्दसपुव्वाऽऽदिमे य संघयणे। तव पारंच-ऽणवट्ठा, णव-दस पच्छित्तवोच्छिण्णा॥ 1. दटुं (ला)। २.व्य (4177) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है- किंच न कारेति तधा, पासाए पागयजणो वि। 3. एरिसो (पा, ब, ला)। 4. व्य (4176) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है पासायस्स उ निम्मं, लिहावियं चित्तकारगेहि जहा। 5. नवर (व्य, ला)। 6. एमेव इमं पि पासामो (व्य 4178) / 7. एवमेव (ला)। ८.वि (व्य 4179) / 9. 4 (ला)। १०.विउस्स' (व्य 4180) / 11. दसहा (मु)। 12. तु. नि.६६८०, व्य (4181) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार हैतेण परेणऽटुविधं, जा तित्थं ताव बोधव्वं / इस गाथा के बाद प्रतियों में निम्न उल्लेख मिलता हैतम्मि कालगते तित्थं, चरित्तं च वोच्छिज्जिहीति। यह वाक्यांश गाथा का अंश नहीं है अत: टिप्पण में उल्लेख कर दिया है।