________________ जीतकल्प सभाष्य 259. जा य ऊणाहिए वुत्ता', सुत्ते मग्गविराधणा। ण 'सुज्झे तीइ'२ देंतो उ, असुद्धो कं च सोधए / 260. देंता वि ण दीसंती, मास-चउम्मासियाउ सोधीओ। 'कुणमाणा वि य सोधिं', ण पासिमो 'जो व सिं देज्जा" // 261. सोहीए य अभावे, देंताण करेंतगाण य अभावे / वट्टति संपतिकाले, तित्थं सम्मत्त-णाणेहिं // 262. णिज्जवगा य ण संती, महपुरिसाणं तु तेसि वोच्छेदे / तम्हा संपयकाले, नत्थि विसुद्धी सुविहिताणं // 263. एवं तु चोइयम्मी, आयरिओ भणति ण हु तुमे णातं। पच्छित्तं कहितं तू, किं धरती किं च वोच्छिण्णं? // 264. अत्थं पडुच्च सुत्तं, अणागतं तं तु किंचि आमुसति / अत्था वि को वि सुत्तं, अणागतं चेव आमसति // 265. सव्वं पि१२ य पच्छित्तं, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थुम्मि। तत्तो च्चिय णिज्जूढं, कप्प-पकप्पो य ववहारो'२ // 266. ताणि धरंती अज्ज वि, तेसु धरतेसु कह तुम भणसि। वोच्छिण्णं पच्छित्तं?, तत्थ इमा तू परूवणया॥ 267. सपदपरूवण अणुसज्जणा य दस 'चोद्दसऽ?'५५ दुप्पसभे। अत्थि ण दीसति धणिएण विणा तित्थं च णिज्जवगे१६ // 268. पण्णवगस्स तु सपदं, पच्छित्तं चोदगस्स तमणिटुं। तं संपयं पि विज्जति, जहा तहा मे णिसामेहि // 1. दाणे (व्य 4168) / २.सुज्झइ (पा, ला), सुज्झति वि (व्य)। 3. माणे य विसोधिं (व्य 4170) / 4. संपई केई (व्य)। ५.तित्थ (ला)। ६.व्य 4171 / 7. वोच्छिन्ने (ब)। 8.4 (ला)। ९.व्य 4172 / 10. आमसति (पा, ब)। ११.व्य 4169 / 12. वि (पा, ला)। १३.व्य 4173 / 14. तु (पा)। 15. चउद्द (ब)। १६.व्य 4174 / 17. मेहिं (पा, ब, ला), व्य 4175 /