________________ जीतकल्प सभाष्य 317. ण विणा तित्थं णियंठेहिं, णियंठा व अतित्थगा। छक्कायसंजमो जाव, ताव 'दुण्हाऽणुसज्जणा" // 318. सव्वण्णूहिँ परूविय, छक्काय महव्वता य समितीओ। स च्चेव य पण्णवणा, संपयकालम्मि' साहूणं / 319. तं णो वच्चति तित्थं, दंसण-णाणेहि एव सिद्धं तु। णिज्जवगा वोच्छिण्णा, जं पि य भणितं तु तं ण तहा॥ 320. सुण जह णिज्जवगऽत्थी, दीसंति जहा य णिज्जविज्जता। इह दुविधा णिज्जवगा, अत्ताण परे य बोधव्वा // . . 321. पादोवगमे इंगिणि, दुविधा खलु होति आयणिज्जवगा। णिज्जवणा य परेण व, भत्तपरिण्णाय बोद्धव्वा // 322. पादोवगमे इंगिणि, दोण्णि वि चिटुंतु ताव मरणाई। भत्तपरिण्णाएँ विधि, वोच्छामि अहाणुपुव्वीए॥ 323. पव्वज्जादी० काउं, णेयव्वं ताव जाव वोच्छित्ती। पंच तुलेऊण य सो, भत्तपरिण्णं परिणतो य॥ 324. सपरक्कमे२ य अपरक्कमे या वाघात आणुपुव्वीए / सुत्तत्थजाणएणं, समाधिमरणं तु कातव्वं // 325. भिक्ख५-वियारसमत्थो, जो अण्णगणं तु गंतु चाएति५ / एस सपरक्कमो खलु, तव्विवरीतो भवे इतरो॥ 326. एक्केक्कं तं दुविधं, णिव्वाघातं तहेव वाघातं / वाघातो वि य दुविधो, 'कालाइधरो व्व इतरो व्व'७॥ 1. णुसज्जणा दोण्हं (व्य 4217) / 2. काले वि (व्य 4218) / ३.सिद्धिं (ला)। 4. व्य 4219 / ५.व्य 4220 // 6. वगो (ला, ब)। 7. व्य 4221 / 8. "गम (ब)। ९.व्य 4222 / 10. पावज्जादी (पा, ब, मु)। 11. उ (व्य 4223), नि 3812 / 12. सपरि (पा, ब)। 13. च शब्दान्निाघाते च समुपस्थिते (व्यमटी)। 14. व्य 4224, आनि 282 / 15. भिक्खु (ला, ब)। १६.वाएति (व्य 4225) / 17. कालऽतियारो य इतरो वा (व्य 4226) / '