________________ 32 जीतकल्प सभाष्य 200. वासे बहुजणजोग्गं, वित्थिण्णं जं तु गच्छपायोग्गं / पडिलेह बाल-दुब्बल-गिलाण-मादेसमादीणं // 201. 'खेत्त असति अगहित्ता'२, ताहे गच्छंति ते उ अण्णत्थ। 'पीढप्फलगग्गहणे, ण उ मइलंती णिसेज्जादी॥ 202. 'वासासु विसेसेणं, अण्णं कालं तु गमय अण्णत्थ"। पाणा सीतल-कुंथादिया य तो गहण वासासुं। 203. जं जम्मि होति काले, कातव्वं तं समाणए तम्मि। सज्झाय पेह उवधी, उप्पादण भिक्खमादी तु // 204. अहगुरु" जेणं पव्वावितो तु जस्स व अधीत पासम्मि। अहवा अहागुरू खलु, हवंति रातिणियतरगा उ॥ 205. तेसिं अब्भुट्ठाणं, डंडग्गह' तह य होति आहारे। उवधीवहणं विस्सामणं च संपूयणा एसा॥ 206. एसा खलु बत्तीसा, 'जाणाति जो पतिट्ठितो एत्थं। ववहारे अलमत्थो, अहवावि भवे इमेहिं तु॥ 207. छत्तीसाए तु• ठाणेहिं, जो 'होयऽपरिणिद्वितो 11 // नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए / 208. छत्तीसाए तु ठाणेहि१२, जो होति परिणिट्ठितो / अलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए / 209. छत्तीसाए तु ठाणेहिं, जो होति अपतिट्टितो। नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए" // 1. अहवावि (व्य 4118) / 9. एयं जाणाति जो ठितो वेत्थ (व्य 4124, ब)। २.खेत्तऽसति असंगहिया (व्य 4119) / 10.4 (व्य 4125) / 3. न उ मइलेंति निसेज्जा, पीढगफलगाण गहणम्मि (व्य)। 11. होति अपरि (ला, पा, व्य)। 4. वितरे न तु वासासुं, अन्ने काले उ गम्मतेऽण्णत्थ (व्य 12. ट्ठाणेहिं (ब), सर्वत्र / 4120) / 13. सुपरि ,(व्य 4126) / 5. वासासु (ब)। 14. व्य 4127, हस्तप्रतियों एवं मुद्रित पुस्तक में गा. 207 ६.य (व्य 4121) / के बाद 209 की गाथा है लेकिन यहां उपर्युक्त क्रम 7. अधा" (व्य 4122) / संगत प्रतीत होता है। ८.दंड (व्य 4123) /