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________________ पाठ-संपादन-जी-१ 191. बहु 'बहुविह पोराणं", दुद्धर ऽनिस्सिय तहेव असंदिद्धं' / पोराण पुरा 'व जितं", दुद्धरणय-भंगगुविलत्ता // 192. एत्तो उ पओगमती, चउब्विहा होति आणुपुव्वीए। आय पुरिसं च खेत्तं, 'वत्थु वि५ पउंजए वादं / 193. जाणति पयोगभिसजो, 'वाही जेणाऽऽतुरस्स छिज्जति ऊ'६ / इय वादो व कहा वा, णियसत्तिं णाउ कातव्वा / / 194. पुरिसं उवासगादी, अहवा वी जाणगा इयं परिसं। पुव्वं तु गमेऊणं, ताहे वादो पउत्तव्वो॥ * 195. खेत्तं मालवमादी, अहवा वी साधुभावितं जं तु / नाऊण तहा विहिणा, वादो हु° तहिं पउत्तव्वो॥ 196. वत्थु 'पुण परवादी 11, बहुआगमितो न वावि नाऊणं / राया व 'रायऽमच्चो '12, दारुण- भद्दस्सभावो वा३ // 197. एसा उ पओगमती, एत्तो वोच्छामि संगहपरिण्णं / सा वि य चउव्विगप्पा, तीय विभागो इमो होति / 198. बहुजणजोग्गं 'पेहे, खेत्तं '14. तह पीढफलहमोगिण्हे५ / . वासासु एतें दोण्णि वि, काले य समाणए कालं // 199. पूए अहागुरुं ‘पि य१६, चउत्थ एसा उ संगहपरिण्णा। एत्तो एक्केक्कीय य, इमा विभासा मुणेतव्वा // . .1. “विधं पुराणं (व्य 4110) / 2. ऽणितयं (मु, पा, ब, ला)। . 3. छंद की दृष्टि से 'ऽसंदिद्धं' पाठ होना चाहिए। 4. वायित (व्य), ज्जितं (पा, ला)। 5. वत्थु विय (व्य 4111), वत्थु विउ (ब)। 6. जेण आतुरस्स छिज्जती वाही (व्य 4112) / 7. “सत्ती (मु, ब, ला)। 8. जाणिगा (व्य 4113) / 9. पुरिसं (ब)। १०.य (व्य 4114) / 11. परवादी ऊ (व्य 4115), वाइ (ला)। 12. 'मत्तो (ब)। 13. त्ति (व्य)। 14. खेत्तं पेहे (ब, व्य 4116) / 15. फलग-पीढमाइण्णो (व्य), हनिग्गिण्हे (ला)। १६.पी (व्य)। 17. चउहा (पा, व्य)। 18. व्य (4117) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है एतेसिं तु विभाग, वुच्छामि अहाणुपुव्वीए।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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