________________ 30 जीतकल्प सभाष्य 181. अपरीणामगमादी, वियाणितुमभायणे' ण वाएति / जह आममट्टियघडे, अंबेव ण छुब्भतीरे खीरं // 182. जदि छुब्भती विणस्सति, नस्सति वा एवमपरिणामादी। णोद्दिस्से छेदसुतं, समुद्दिसे यावि तं चेव // 183. परिणिव्वविया वाए,जत्तियमेत्तं तु तरति तुग्घेत्तुं / जाहगदिटुंतेणं, 'परिजित ताहऽण्णु उद्दिसति // 184. णिज्जवगो अत्थस्सा, जो उ विजाणेति अत्थ सुत्तस्स। .. अत्थेण वि णिव्वहती, अत्थं पि कहेति जं भणितं // मतिसंपद चउभेदा, उग्गह ईहा अवाय धारणया। उग्गहमति छब्भेदा, तत्थ 'इमे होंति छब्भेदा'॥ 186. खिप्प बहु बहुविहं वा, धुवऽणिस्सित तह य होतऽसंदिद्धं / ओगेण्हति एवीहा, अवायमिति१२ धारणा चेव॥ 187. 'परवाइण सिस्सेण '13 व, उच्चारितमेत्तमेव ओगिण्हे। तं खिप्पं बहुगं पुण, पंच व 'छ स्सत्त'१४ गंथसता / / 188. 'बहुविहऽणेगपगारं'१५, जह लिहति ऽवधारए६ गणेति वि य। अक्खाणगं कहेती, सद्दसमूहं व८ णेगविहं // 189. ण वि विस्सरति धुवत्तं, अनिस्सितं जं ण पोत्थगे लिहितं। अणुभासित व्व गेण्हति, निस्संकित ‘होतऽसंदिद्धं '21 // 190. उग्गहितस्स तु ईहा, ईहित पच्छा अणंतरअवायो२२ / अवगते पच्छा धारण, तीय विसेसो इमो णवरं / / 1. "तु अभा' (व्य 4100) / 2. छुब्भए (ब, मु)। 3. णोदिस्से (पा, ब, ला)। 4. वावि (व्य 4101) / 5. उग्गहिउं (व्य 4102) / 6. परिचिते ताव तमुद्दि (व्य)। 7. व (व्य 4103), विहि (ला)। 8. "हति इ (ब, ला, मु)। 9. धरणा य (व्य 4104) / 10. इमा होति णातव्वा (व्य)। 11. उग्गिण्हति (ब)। 12. 'यमवि (व्य 4105) / 13. सीसेण कुतित्थीण (व्य 4106) / 14. छ व सत्त (ब, ला, मु)। 15. विहे (ला)। 16. पहारए (ब, मु, ला)। 17. कहेति इ (मु, पा)। 18. व्व (ब, ला)। 19. व्य 4107 / 20. वस्सरइ (पा, ला)। 21. संदिटुं (पा, ला), होति सं (ब), व्य 4108 / 22. रमवाओ (व्य 4109) /