________________ पाठ-संपादन-जी-१ 171. आरोह-परीणाहो, तह य अणोत्तप्पया' सरीरस्स। पडिपुणिंदियमादिय, संघतणथिरे य बोद्धव्वो॥ 172. आरोहो दिग्घत्तं, विक्खंभो होति. तत्तिओप चेव। आरोह-परीणाहो, य संपदा एस णातव्वा / 173. तपु लज्जाए धातू, अलज्जणिज्जो' अहीणसव्वंगो। होति अणोत्तप्पो खलु', अविकलइंदी तु पडिपुण्णो॥ 174. पढमादीसंघयणो', बलियसरीरो 'थिरो मुणेतव्वो। एसा सरीरसंपद, एत्तो वयणम्मि वोच्छामि // .175. आदेज्ज' मधुरवयणो, अणिस्सितवयण तहा असंदिद्धो। आदेज्जगज्झवक्को, अत्थवगाढं भवे मधुरं२ / / अहवा अफरुसवयणो, खीरासवलद्धिमादिजुत्तो'३ वा। अहवा सूसर-सूहग-गंभीरजुओ महुरवक्को" / 177. णिस्सितों कोहादीहिं, रागद्दोसेहि वावि जं वयति। होति अणिस्सितवयणो, जो वयती एय वतिरित्तं // 178. अव्वत्तं अफुडत्तं५, अत्थबहुत्ता व होति संदिद्धं६ / विवरीतमसंदिद्धं, वयणेसा संपदा चतुधा // 179. वायणभेदा चतुरो, विधिउद्दिसणा' 'समुद्दिसणओ य८॥ परिणिव्वविया वाए, निज्जवणा चेव अत्थस्स / / 180. तेणेव गुणेणं तू, वाएयव्वा परिक्खितुं सीसा। उद्दिसई विजिणेउं, जं जस्स तु जोग्ग तं तस्स // .. 1. अणा (ला)। 2. रम्मि (व्य 4091), रस्सा (ला)। 3. "पुण्णइंदिएहि य (व्य), परिपु (मु)। 4. थिरसंघयणो (व्य)। 5. वि जइ (व्य 4092) / 6. तित्तिओ (पा, ब)। 7. “णीओ (व्य 4093) / 8. सो (व्य)। 9. पढमगसंघयणथिरो (व्य 4094) / .10. य होति नातव्वो (व्य)। 11. आदेज्ज त्ति पदैकदेशे पदसमुदायोपचारादादेयवचन इति (व्यमटी)। १२.व्य 4095 / 13. "वमादिलद्धिजुत्तो (व्य)। 14. व्य (4096), में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है निस्सियकोधादीहिं,अहवा वी रागदोसेहिं। 15. 'डत्थं (पा, ब, व्य 4097) / 16. संतिटुं (पा)। 17. विजिओद्देसण (व्य 4098) / १८."णया तु (व्य)। 19. तस्सा (ला), व्य 4099 /