________________ जीतकल्प सभाष्यः 66. 162. एसा अट्ठविधा खलु, एक्केक्कीए' चउव्विधो भेदो। इणमो. उ समासेणं, वोच्छामी' आणुपुव्वीए // . 163. आयारसंपदाए, संजमधुवजोगजुत्तया पढमा। बितिय असंपग्गहिता, अणियतवित्ती भवे ततिया // तत्तो य वुड्डसीले, आयारे संपदा चउद्धेसा' / चरणमिहर्ष संजमो तू, तहियं णिच्चं तु उवउत्तो॥ 165. आयरिओ य' बहुस्सुत-तवस्सि-जच्चादिएहि व मदेहि। जो होति अणुस्सित्तो, 'सो तु असंपग्गहीउ त्ति" // . . . अणियतचारी अणियतवित्ती 'अगिहो य? होति 'जो अणिसो। . णिहुयसभाव अचंचल, णातव्वो वुड्डसीलो ति॥ 167. बहुसुत परिजितसुत्ते'२, विचित्तसुत्ते य होति बोद्धव्वे। घोसविसुद्धिकरे या, चउहा सुतसंपदा होति // 168. बहुसुत जुगप्पहाणो, अब्भंतर बाहिरं 'च बहु जाणे 15 / होति चसद्दग्गहणा, चारित्तं पी सुबहुयं तु॥ 169. सगणामं व परिजितप, उक्कम-कमओ बहूहि ‘व कमेहिं१७ / ससमय-परसमएहिं, उस्सग्ग-ऽववायओ चित्तं॥ 170. घोसा उदत्तमादी, तेहिँ विसुद्धं तु घोसपरिसुद्धं / एसा सुतोवसंपद, सरीरसंपदमतो वोच्छं / 1. 'क्काए (मु)। 10. अगिहितो वि (व्य 4086) / 2. वोच्छामि (पा)। 11. अणिकेतो (व्य)। 3. अधाणु (व्य 4082) / 12. परिचिय (व्य 4087) / 4. व्य 4083 / 13. वा (व्य)। 5. चउब्भेया (व्य 4084) / 14. होंति (पा, ला)। 6. चरणं तु (व्य)। 15. सुतं बहुहा (व्य 4088) / 7. उ (व्य)। 16. परिचितं (व्य 4089) / 8. ऽसंपग्गहितो भवे सो उ (व्य ४०८५),पा प्रति में इस गाथा १७.विगमेहिं (व्य)। का केवल 'आयरिओ' इतना ही संकेत मात्र मिलता है। १८.विचित्तं (पा. ला)। 9. x (पा)। १९.व्य 4090 /