________________ पाठ-संपादन-जी-१ 131. दव्वेहिँ पज्जवेहि य, कम खेते काल-भावपरिसुद्धं / आलोयणं सुणेत्ता, तो ववहारं पउंजंति // 132. दव्वे सच्चित्तादी, पज्जव दव्वा बहूविगप्पेहिं / पुव्वाणुपुव्विमादी, कमओ एवं तु आलोए॥ 133. अद्धाण जणवदे वा, खेत्ते काले सुभिक्ख-दुन्भिक्खे। भावे हट्ठ-गिलाणे, सेविय जह तं तहाऽऽलोए // 134. 'अहवा सहसऽण्णाणा", भीतेण व पेल्लितेण व परेहिं / वसणेण पमादेण व, मूढेण व राग-दोसेहिं // 135. पुव्वं अपासिऊणं, छुढे पादम्मि जं पुणो पासे। __ ण य तरति णियत्तेउं, पादं सहसाकरणमेतं // 136. अण्णतरपमादेणं, असंपउत्तस्स णोवउत्तस्स। इरियादिसु भूतत्थे, अवट्टतो एतदण्णाणं // 137. भीतो पलायमाणो, अभियोगभएण वावि जं कुज्जा। पडितो व अपडितो वा, पेल्लिज्जा' पेल्लितो पाणे // 138. जूतादि होति वसणं, पंचविधो खलु भवे पमादो उ। 'मिच्छत्तभावणा तू", मोहो तह° राग-दोसा ऊ॥ 139. एतेसिं ठाणाणं, अण्णतरे कारणे समुप्पण्णे। . तो आगमवीमंसं, करेंति अत्ता तदुभएणं१२ // 140. जदि आगमो य आलोयणा य दोण्णि वि समं तु निवतंति। एसा खलु वीमंसा, जो असहू" जेण वा सुज्झे // 141. नाणमादीणि अत्ताणि५, जेण अत्तो उ सो भवे / रागद्दोसप्पहीणे वा, जे व इट्ठा विसोहिए // 1. पउंज्जंति (ब, ला), व्य 4055 / 9. "णाओ (व्य 4060) / 2. सहसा अण्णाणेण व (व्य 4056), "सहस्स (पा, ब)। 10. तहा (पा, ला)। 3. परेण (व्य)। 11. ट्ठाणाणं (ब, ला)। 4. व्य 4057, नि 97 / १२.व्य 4061 / ५.रीया (नि 96) / १३.निवयंतो (व्य 4062) / 6. होतणाभोगो (नि), व्य 4058 / 14. वऽसहू (व्य)। 7: पेलिज्जउ (व्य 4059) / 15. अण्णाणि (ब, ला, मु)। '8. गीतादि (ब, ला)। १६.व्य 4063 / .