________________ 24 जीतकल्प सभाष्य 120. इय मासाण बहूण वि, राग-द्दोसऽप्पयाए थोवं तु। रागद्दोसोवचया, पणगे वि जिणा बहुं देंति' // . 121. पच्चक्खी पच्चक्खं, पासति पडिसेवगस्स सो भावं। किह जाणति पारोक्खी?, णातमिणं तत्थ धमएणं // 122. नालीधमएण जिणा, उवसंधारं करेंति पारोक्खे। जह सो कालं जाणति, सुतेण सोहिं तहा सोउं॥ 123. जेणं जीवा-ऽजीवा, उवलद्धा सव्वभावपरिणामा। तो पुव्वधरा सोहिं, कुव्वंति सुतोवदेसेणं // 124. तं पुण केण कतं तू, सुतणाणं जेण जीवमादीया। नजंति सव्वभावा?, केवलणाणीण तं तु कतं // 125. संते वि आगमम्मी', जाहे आलोइयं तु तेण भवे / सम्मं नाऽऽलोएती, पडिवज्जति सारिओ जइया / / 126. तो तस्स उ पच्छित्तं, जेण विसुज्झति तगं पयच्छंति। आगमववहारी छव्विधो वि पलिउंचिएँ ण देति // आलोइय-पडिकंते', होति आलोयणा' तु णियमेणं।' अणालोइयम्मिर भयणा, किह पुण भयणारे भवति तस्स? // 128. आलोयणापरिणतो, अंतर कालं करे अभिमुहो वा। अहवा वी आयरिओ, एमेव य होति संपत्तो३ // 129. आराहओ तु तह वी, जं सम्मालोयणापरिणतो तु। नाराहेति अपरिणतो, एवं भयणा भवति एसा॥ 130. अवराहं वियाणंति, तस्स सोधिं व जद्दवी। तहेवाऽऽलोयणा वुत्ता, आलोयंते बहू गुणा // १.व्य 4045/ २.व्य 4046 / 3. संहारं (व्य 4047) / 4. जेसिं (व्य)। ५.व्य (4048) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है- सव्वाहि नयविधीहिं, केण कतं आगमेण कयं / ६.व्य 4049 / ७.म्मिं (ला, ब)। 8. पडिकंतस्स (व्य 4052) / 9. होती (मु)। 10. आराधणा (व्य)। 11. लोयम्मि (व्य)। 12.4 (पा)। 13. संपत्ते (ब)। १४.व्य 4054 /