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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श उनके बाद हुए, जिन्होंने बृहत्कल्प लघुभाष्य की रचना की, वे क्षमाश्रमण पद से अलंकृत थे। आचार्य संघदासगणि बृहत्कल्प भाष्य के कर्ता हैं, इसकी पुष्टि में सबसे बड़ा प्रमाण आचार्य क्षेमकीर्ति का निम्न उद्धरण है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कल्पेऽनल्पमहर्घ प्रतिपदमर्पयति योऽर्थनिकुरम्बम्। श्रीसंघदासगणये चिन्तामणये नमस्तस्मै / / "अस्य च स्वल्पग्रन्थमहार्थतया दुःखबोधतया च सकलत्रिलोकीसुभगङ्करणक्षमाश्रमणनामधेयाभिधेयैः श्रीसंघदासगणिपूज्यैः प्रतिपदप्रकटितसर्वज्ञाज्ञाविराधनासमुद्भूतप्रभूतप्रत्यपायजालं निपुणचरणकरणपरिपालनोपायगोचरविचारवाचालं सर्वथा दूषणकरणेनाप्यदूष्यं भाष्यं विरचयाञ्चक्रे।" क्षेमकीर्ति के इस उल्लेख के अतिरिक्त कहीं भी व्याख्याकारों ने भाष्यकार के रूप में संघदासगणि का उल्लेख नहीं किया है इसलिए उनके कर्तृत्व के बारे में प्रश्नचिह्न तो खड़ा ही रहता है। बृहत्कल्प भाष्य की प्रथम गाथा में कप्पव्ववहाराणं वक्खाणविहिं पवक्खामि' का उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि बृहत्कल्प और व्यवहार / भाष्य के रचयिता एक ही हैं। बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ-इन तीन छेदसूत्रों के पौर्वापर्य पर भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। दलसुखभाई मालवणिया के अभिमत से सर्वप्रथम बृहत्कल्प भाष्य उसके बाद निशीथ भाष्य तथा तत्पश्चात् व्यवहार भाष्य की रचना हुई लेकिन हमारे अभिमत से बृहत्कल्प भाष्य के बाद व्यवहार भाष्य की रचना हुई। बृहत्कल्प भाष्य के बाद व्यवहार भाष्य की रचना हुई, इसका प्रबल हेतु यह है कि व्यवहार भाष्य में अनेक स्थलों पर 'जह कप्पे', 'वण्णिया कप्पे', 'पुव्वुत्तो' आदि का उल्लेख मिलता है। यह उल्लेख बृहत्कल्पभाष्य की ओर संकेत करता है। पंचकल्पभाष्य के रचनाकार के रूप में संघदासगणि का नाम प्रसिद्ध है लेकिन इसे भी ऐतिहासिक प्रमाणों से प्रमाणित नहीं किया जा सकता। केवल आचार्य क्षेमकीर्ति के उल्लेख 'कप्प' शब्द से संघदासगणि को बृहत्कल्प और पंचकल्प भाष्य के कर्ता के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। ऐसा संभव लगता है कि निशीथ भाष्य संकलित रचना है, जिसकी संकलना किसी एक आचार्य ने नहीं की। यदि बृहत्कल्प लघुभाष्य, व्यवहार भाष्य, पिण्डनियुक्ति और ओघनियुक्ति की गाथाएं इसमें से निकाल दी जाएं तो मूलग्रंथ का 15 प्रतिशत अंश भी बाकी नहीं रहेगा। भाष्य के रूप में संकलनकर्ता ने कहीं-कहीं निशीथ-नियुक्ति को स्पष्ट करने के लिए अथवा एक सूत्र से दूसरे सूत्र में सम्बन्ध स्थापित करने हेतु कुछ गाथाओं की रचना की है। भाष्यकार संघदासगणि का समय भी विवादास्पद है। अभी तक इस दिशा में विद्वानों ने विशेष
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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