________________ जीतकल्प. सभाष्य 2465-78. तीर्थंकर, प्रवचन आदि की 2542. आशातना करने पर पाराञ्चित | 2543-47. प्रायश्चित्त की प्राप्ति। 2479,2480. पाराञ्चित के तीन प्रकार। 2481. दुष्ट पाराञ्चित के दो भेद। / 2548. . 2482-89. स्वपक्ष-स्वपक्ष में कषाय दुष्ट | 2549-52. के चार दृष्टान्त। 2490-94. आचार्य के लिए आहार से | 2553-55. सम्बन्धित विशेष निर्देश। 2495-97. मंडलि-पात्र में डाला जाने वाला | 2556-64. आहार। 2498-2500. परपक्ष में का 2565-75. उदाहरण। 2501-06. परपक्ष-परपक्ष के प्रकार एवं | 2576-87. उसके प्रायश्चित्त। 2507-24. विषय दुष्ट की चतुर्भंगी, उसकी व्याख्या एवं प्रायश्चित्त। / 2588, 2589. 2525, 2526. प्रमाद के पांच प्रकार। 2527-36. स्त्यानर्द्धि निद्रा के पुद्गल आदि पांच उदाहरण एवं उनके | 2590-94. प्रायश्चित्त। 2595-01. 2537-41. अन्योन्य (गुदा-संभोग) 2602-05. प्रतिसेवक को पाराञ्चित 2606-08. प्रायश्चित्त। अनवस्थाप्य के दो प्रकार। दुष्ट आदि तीन प्रकार के पाराञ्चित तथा उनकी क्षेत्र और लिंग के आधार पर व्याख्या। तप पाराञ्चित किसको? पाराञ्चित प्रायश्चित्त प्राप्त कर्ता की योग्यता। पाराञ्चित प्रायश्चित्त का कालमान। पाराञ्चित तप वहनकर्ता के प्रति आचार्य का कर्तव्य। लब्धिधारी पाराञ्चित के द्वारा की जाने वाली संघीय-सेवा। संघ-सेवा से उसके प्रायश्चित्तकाल में कमी या प्रायश्चित्तमुक्ति। आचार्य भद्रबाहु के बाद अनवस्थाप्य और पाराञ्चित प्रायश्चित्त का विच्छेद। जीतकल्प की व्याख्या। जीतकल्प प्रायश्चित्त के पात्र / अपात्र को वाचना देने का निषेध। जीतकल्प का महत्त्व। आदि