________________ जीतकल्प सभाष्य . 1557-68. संहत दोष के प्रायश्चित्त। 1732-41. उपधि के गिरने, विस्मृत आदि 1569-81. वर्जनीय दायक एवं उनके प्रायश्चित्त। | होने पर प्रायश्चित्त। 1582-86. उन्मिश्र दोष की व्याख्या। 1742-69. जीतव्यवहार से सम्बन्धित अन्य 1587-93. अपरिणत दोष की व्याख्या एवं उसके | प्रायश्चित्त। प्रायश्चित्त। 1770. पुस्तक पंचक और तृण पंचक 1594-99. लिप्त दोष की व्याख्या एवं उसके के प्रकार। प्रायश्चित्त। 1771, 1772. अप्रतिलेखित दूष्य पंचक। 1600-04. छर्दित दोष की व्याख्या एवं उसके 1773, 1774. चर्म पञ्चक के नाम। प्रायश्चित्त। 1775. स्थापना कुल में बिना आज्ञा जाने 1605-10. ग्रासैषणा के निक्षेप एवं उसके भेद पर प्रायश्चित्त। प्रभेद। 1776. वीर्य और गूहन शब्द के एकार्थक। 1611-20. संयोजना दोष की व्याख्या एवं उसके 1777-14. जीतव्यवहार से सम्बन्धित अन्य प्रायश्चित्त। प्रायश्चित्त। 1621-42. प्रमाण दोष की व्याख्या एवं उसके 1815-21. द्रव्य के आधार पर प्रायश्चित्तप्रायश्चित्त। दान। . 1643-48. अंगार दोष की व्याख्या एवं उसके 1822-25. क्षेत्र के प्रकार एवं उसके आधार प्रायश्चित्त। पर प्रायश्चित्त-दान। 1649-54. धूमदोष की व्याख्या एवं उसके 1826-30. काल के भेद एवं उसके आधार प्रायश्चित्त। पर प्रायश्चित्त-दान। 1655-70. कारण दोष एवं उसकी व्याख्या। 1671-74. पिण्डैषणा के 46 दोषों से शुद्ध भिक्षा | 182 1831-35. नवविध व्यवहार की व्याख्या। का निर्देश। 1936-38. भाव के आधार पर प्रायश्चित्त१६७५-२१. भिक्षाचर्या के दोषों से सम्बन्धित दान। प्रायश्चित्त। पुरुष के आधार पर प्रायश्चित्त 1722-26. धावण, क्रीड़ा आदि करने पर में अल्पता या अधिकता। प्रायश्चित्त। 1940, 1941. पुरुषों के विविध प्रकार। 1727-31. उपधि के जघन्य, मध्यम आदि तीन | 1942-59. परिणामक, अतिपरिणामक आदि भेद। शिष्यों की परीक्षा। 1939.