________________ जीतकल्प संभाष्य 978. 967-69. सूर्योदय और सूर्यास्त से सम्बन्धित | 1069-87. सामान्य जीतव्यवहार से सम्बन्धित आहार-विवेक। प्रायश्चित्त। 970, 971. ग्लान आदि के लिए आनीत आहार 1088-94. उद्गम दोष की व्याख्या। का विवेक। 1095-97. उद्गम दोष के सोलह भेद। 972, 973. साधु का गमनागमन विहार। 1098-95. आधाकर्म की व्याख्या एवं उसके 974, 975. समिति की विशुद्धि एवं श्रुत हेतु प्रायश्चित्त। व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त। | 1196-02. औद्देशिक की व्याख्या एवं उसके . 976, 977. दुःस्वप्न आदि की विशोधि में व्युत्सर्ग | प्रायश्चित्त। प्रायश्चित्त। 1203-15. पूतिकर्म की व्याख्या एवं उसके नौका के चार प्रकार। प्रायश्चित्त। 979, 980. नदी-संतार के चार प्रकार तथा उनका | 1216-18. मिश्रजात के भेद एवं उसके प्रायश्चित्त। प्रायश्चित्त। 1219-23. स्थापना दोष की व्याख्या एवं उसके 981. भक्त-पान आदि की व्याख्या। प्रायश्चित्त। 982, 983. अर्हत् की परिभाषा एवं उसके निरुक्त।। 1224-37. प्राभृतिका दोष की व्याख्या एवं उसके 984, 985. भक्त-पान तथा गमनागमन में 25 प्रायश्चित्त।, श्वासोच्छ्वास का प्रायश्चित्त। / 1238-40. प्रादुष्करण दोष की व्याख्या एवं उसके 986-88. उच्चार और प्रस्रवण शब्द के निरुक्त प्रायश्चित्त। तथा इनसे सम्बन्धित प्रायश्चित्त।। | 1241-44. क्रीतकृत दोष की व्याख्या एवं उसके 989, 990. प्राणातिपात और मृषावाद आदि से - प्रायश्चित्त। सम्बन्धित स्वप्न आने पर प्रायश्चित्त।। 1245-48. प्रामित्य एवं परिवर्तित दोष के भेद 991-94. उच्छ्वास का प्रमाण तथा प्रतिक्रमण एवं उनके प्रायश्चित्त। से सम्बन्धित प्रायश्चित्त। | 1249-57. अभिहत और उद्भिन्न दोष के भेद 995-30. ज्ञान से सम्बन्धित अतिचार और एवं उनके प्रायश्चित्त। प्रायश्चित। 1258-69. पिहित दोष की व्याख्या एवं उसके 1031-36. आगाढ़ और अनागाढ़ योग की व्याख्या।। प्रायश्चित्त। 1037-68. दर्शनाचार के आठ प्रकार एवं उनसे | 1270-73. मालापहृत दोष की व्याख्या एवं सम्बन्धित प्रायश्चित्त। उसके प्रायश्चित्त।