________________ विषय-सूची 872-79. गुरु के प्रति होने वाले विनय के भेद | 933. संभ्रम और भय की व्याख्या। एवं उनकी व्याख्या। | 934. आतुर कौन? 880. सामाचारी के दश प्रकार। 935, 936. आपत्ति के चार प्रकार एवं उनकी 881-01. लघुस्वक सूक्ष्म के प्रकार एवं उनकी व्याख्या। व्याख्या। 937-41. परवशता के कारण एवं उसके 902. लघुस्वक अदत्त की व्याख्या। अतिचार। 903-05. लघुस्वक परिग्रह की व्याख्या। / 942. पिंडविशोधि आदि में अतिचार लगने 906-12. खांसी, छींक, वातनिसर्ग आदि की पर तदुभय प्रायश्चित्त। अविधि और यतना। 943. तदुभय प्रायश्चित्त का स्वरूप। 913. स्खलना के दो प्रकार। 944. आशंका होने पर तदुभय प्रायश्चित्त / स्खलना के स्थान। 945-48. सूत्र में आए दुश्चिन्तित आदि पदों की यतनामुक्त मुनि के स्खलना होने पर व्याख्या। मिथ्याकार प्रतिक्रमण। 949, 950. जीसू 15 में आए शब्दों की व्याख्या। अनाभोग की परिभाषा। 951, 952. उपयुक्त होने पर भी कर्मोदय से 917. सहसाकरण की परिभाषा। विराधना। . 918. सहसा अनाभोग में मिथ्याकार 953. दर्शन आदि में अतिचार लगने पर प्रतिक्रमण। तदुभय प्रायश्चित्त। .919, 920. शय्यातर बालक तथा ज्ञातिजनों से स्नेह | 954. विवेक प्रायश्चित्त के कथन की प्रतिज्ञा। करने पर मिथ्याकार प्रतिक्रमण। | 955. . पिण्ड शब्द का अर्थ। 921-28. भय के सात प्रकार एवं उनके प्रायश्चित्त। | 956, 957. पिण्ड के भेद-प्रभेद। 929. वियोग में शोक करने पर मिथ्याकार | 958. उपधि के प्रकार। प्रतिक्रमण। 959. शय्या की परिभाषा। बकुश के पांच प्रकार। 960. गीतार्थ कौन? कंदर्प आदि में वर्तन करने पर | 961,962. अशुद्ध आहार ग्रहण करने पर शुद्धि प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त। का विवेक। तीसरे तदुभय प्रायश्चित्त-कथन की | 963. कालातीत आहार का स्वरूप। प्रतिज्ञा। | 964-66. अध्वातीत आहार का विवेचन। 931.. 932