________________ जीतकल्प सभाष्य 806. 741. उपधियों के प्रकार। | 791-96. वचनगुप्ति में साधु का उदाहरण। . 742-49. आहार शय्या आदि ग्रहण के सम्बन्ध | | 797-03. कायगुप्ति के दो उदाहरण / में शिष्य की जिज्ञासा एवं आचार्य का | 804. समिति की परिभाषा एवं उसके प्रकार। समाधान। 805. ईर्यासमिति का प्रमाद। 750-52. निर्गमन के अनेक कारण। भाषा समिति का प्रमाद। 753,754. अवनि आदि शब्दों का अर्थ। 807. एषणा समिति का प्रमाद। 755-57. निर्गमन के अन्य कारण। 808. आदान-निक्षेप समिति का प्रमाद। 758-60. सौ हाथ के भीतर या दूर जाने के कारण। | 809. निक्षेप शब्द का मिरुक्त। 761-63. श्लेष्म, प्रस्रवण आदि करने में | 810-12. प्रतिलेखन और प्रमार्जन की चतुर्भगी। आलोचना नहीं। 813, 814. प्रतिलेखन प्रमार्जन के प्रमादयुक्त छह 764. गच्छ से निर्गमन के दो हेतु-सकारण | भंग। और निष्कारण। 815, 816. उच्चार और प्रस्रवण का निरुक्त। 765, 766. सकारण निर्गमन के हेतु। 817-19. ईर्यासमिति में अर्हन्नक साधु का 767, 768. निष्कारण निर्गमन के हेतु। उदाहरण। 769. आलोचना कब? 820-23. भाषा समिति में साधु का उदाहरण। 770. आलोचना के दो प्रकार-ओघ और | 824. भाषा समित की विशेषता। विभाग। 825. एषणा समित का वैशिष्ट्य। 771-73. ओघ आलोचना का स्वरूप। 826-47. एषणा समिति में नंदिषेण का उदाहरण। 774,775. विभाग आलोचना कब? 848,849. आदान भंड निक्षेपणा समित का 776, 777. अन्य गण से आगत साधु के प्रकार। स्वरूप। 778. अन्य गण से आगत साधु की विभाग | 850-53. चौथी समिति में दो साधुओं का आलोचना। उदाहरण। 779.. उपसंपदा के पांच प्रकार। 854. परिष्ठापन समित की विशेषता। 780-83. विभागतः आलोचना का वर्णन। / 855-60. परिष्ठापन समिति में धर्मरुचि अनगार 784. गुप्ति शब्द का निरुक्त। का उदाहरण। 785. त्रिविध अगुप्ति। 861-71. आशातना की व्याख्या एवं उसके 786-90. मनोगुप्ति में जिनदास का उदाहरण। / प्रकार।