________________ विषय-सूची 563-65. श्रुतव्यवहारी कौन? 709. सर्व संवर और देश निर्जरा किसके? 566-68. आज्ञा व्यवहार की व्याख्या। | 710. मोक्ष के हेतु संवर और निर्जरा। 569-86. आज्ञा व्यवहार में नियुक्ति हेतु शिष्य | 711. संवर और निर्जरा का कारण-तप। की परीक्षा, आम्र और ईमली का / 712. तप का प्रधान अंग-प्रायश्चित्त। दृष्टान्त। 713. सम्बन्ध गाथा। 587. अतिचार के अठारह स्थान। 714. चारित्र का सार-निर्वाण। 588-35. दर्पिका एवं कल्पिका प्रतिसेवना के | 715. ज्ञान की विशुद्धि से चारित्र-शुद्धि / भेद एवं व्याख्या। 716, 717. चारित्र-विशुद्धि से निर्वाण। 636-54. आज्ञा व्यवहार के प्रयोग की विधि। 718. आलोचनार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। 655-58. धारणा व्यवहार के एकार्थक तथा | 719,720. प्रतिक्रमणार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। निरुक्त। 721. तदुभयार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। 659-61. धारणा व्यवहार का प्रयोग किसके प्रति? | 722.. विवेकार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। 662-74. धारणा व्यवहार प्रयोक्ता की विशेषता। | 723. व्युत्सर्गार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप / 675-81. जीतव्यवहार की परिभाषा एवं व्याख्या। | 724. तपोर्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। 682-86. जीतव्यवहार प्रयोग के कुछ उदाहरण। | 725. छेदार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। 687-94. सावध और निरवद्य जीतव्यवहार की | 726.. मूलार्ह प्रायश्चित्त का स्वरूप। व्याख्या। 727,728. अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का स्वरूप। * 695-97. व्यवहार का उपसंहार एवं उसकी महत्ता। | 729,730. पाराञ्चित प्रायश्चित्त का स्वरूप एवं 698-701. पांचों व्यवहार के प्रयोग का क्रम। उसके भेद। द्रव्य, क्षेत्र के आधार पर जीतव्यवहार | 731. करणीय कार्यों का निर्देश? का सापेक्ष प्रयोग। 732,733. योग (क्रिया) शब्द का निरुक्त एवं - 703. विशोधि से समाधि। व्याख्या। 704. जीव शब्द का निरुक्त। 734. आलोचना से शुद्धि के स्थान। 705,706. प्रायश्चित्त से आत्मविशुद्धि। घाती कर्म के चार प्रकार। 707. संवर शब्द के एकार्थक एवं 736-39. निरतिचार मुनि को आलोचना की उसके प्रकार। आवश्यकता क्यों? 708. संवर और निर्जरा का स्वरूप। 740. आहार के चार प्रकार। 735.