________________ जीतकल्प सभाष्य 429. अनशनकर्ता के लिए प्रशस्त स्थान। | 514. इंगिनीमरण अनशन का स्वरूप। 430, 431. आहार और पानक रखने का स्थान। | 515,516. इंगिनीमरण अनशनकर्ता की योग्यता। 432. अनशनकर्ता के समक्ष धर्मचर्चा का | 517-21. प्रायोपगमन अनशन के भेद एवं उसका निर्देश। स्वरूप-कथन। 433. निर्यापक के गुण। | 522-27. प्रायोपगमन अनशनकर्ता की दृढ़ता 434-37. निर्यापकों की संख्या एवं उनके कार्य। और भेद-विज्ञान के उदाहरण। 438-50. अनशनकर्ता को चरम आहार देने की | 528,529. आचार्य स्कंदक का वृत्तान्त। विधि एवं उसके गुण। / 530. प्रायोपगमन अनशनकर्ता के ध्यान की 451,452. अनशनी के प्रति प्रतिचारकों का कर्तव्य।। स्थिरता। 453. भक्तप्रत्याख्याता और निर्यापक के | 531. चाणक्य का उदाहरण। विपुल निर्जरा। 532, 533. चिलातपुत्र की सहनशीलता। 454-57. विपुल निर्जरा के चार स्थान। 534-39. प्रायोपगमन अनशन में कालासवैश्य 458-60. अनशनकर्ता का संस्तारक। पुत्र तथा अवंतीसुकुमाल आदि के 461, 462. उद्वर्तन आदि में निर्यापक का सहयोग।। उदाहरण। 463-75. अनशन में मानसिक समाधि उत्पन्न | 540. प्रायोपगमन अनशनकर्ता के भेदविज्ञान करने में निर्यापकों का दायित्व।। का चिन्तन। 476-90. अनशनकर्ता द्वारा आहार-पानी मांगने | 541. प्रायोपगमन अनशनकर्ता की गति। ___पर निर्यापकों का दायित्व। | 542-55. अनुकूल उपसर्गों में अनशनकर्ता की 491, 492. अनशनकर्ता के कालगत होने पर दृढ़ता। परिष्ठापन की विधि। 556. चतुर्दशपूर्वी का विच्छेद होने पर प्रथम 493-96. अनशन में व्याघात होने पर गीतार्थ द्वारा संहनन एवं प्रायोपगमन का विच्छेद। करणीय उपाय। 557. प्रायोपगमन अनशन का महत्त्व। 497. अपराक्रम भक्तप्रत्याख्यान के कथन 558. वर्तमान में भी शोधि और शोधि करने की प्रतिज्ञा। वालों का अस्तित्व। 498. अपराक्रम भक्तप्रत्याख्यान का स्वरूप।। 559. श्रुतव्यवहार के कथन की प्रतिज्ञा। 499-11. व्याघातिम बालमरण के हेतु। | 560. पंचविध व्यवहार का आचार्य भद्रबाहु 512. इंगिनीमरण अनशन और पांच तुलाएं। द्वारा निर्गृहण। 513. भक्तपरिज्ञा और इंगिनीमरण में अंतर। | 561, 562. कल्प और व्यवहार में निपुण कौन?