________________ विषय-सूची 382. 279. आठ प्रायश्चित्त का विच्छेद कहने वालों | निषेध एवं उससे होने वाली हानियां। को प्रायश्चित्त। 374-77. संविग्न की मार्गणा का निर्देश। 280-84. पुलाक आदि पांच निर्ग्रन्थ और उनके | 378-80. अनेक निर्यापक रखने का निर्देश। प्रायश्चित्त। 381. अनशन की पारगामिता हेतु देवता या 285-90. सामायिक आदि पांच प्रकार के संयत | निमित्त का सहयोग। और उनके प्रायश्चित्त। कंचनपुर में देवता-रुदन का वृत्तान्त। 291. प्रायश्चित्त वाहक के संदर्भ में शिष्य | 383. पारगामिता का चिंतन किए बिना की जिज्ञासा। अनशन कराने में प्रायश्चित्त। 292-03. धनिक का दृष्टान्त और उसका उपनय।। 384-87. भक्तप्रत्याख्यान करने में काल विषयक 304-07. सापेक्ष प्रायश्चित्तं-दान। चिन्तन। 308-10. अनवस्था दोष में तिलहारक चोर का | 388. अनशन में व्याघात होने पर की जाने दृष्टान्त एवं उपनय। वाली विधि। 311-19. तीर्थ में ज्ञान और दर्शन की अवस्थिति | 389.. गुरु को पूछे बिना अनशन करने पर विषयक जिज्ञासा एवं समाधान। प्रायश्चित्त। 320, 321. निर्यापक के भेद एवं उनका अनशन | 390, 391. गच्छ को पूछे बिना अनशन कराने से से सम्बन्ध। होने वाली हानियां। 322-27. भक्तपरिज्ञा के कथन की प्रतिज्ञा एवं | 392-07. अनशनी और गच्छ के साधुओं की उसके भेद-प्रभेद। आपस में परीक्षा तथा कोंकणक और 328-31. भक्तपरिज्ञा के गण निःसरण आदि द्वार। | अमात्य का दृष्टान्त। 332, 333. गण निःसरण की विधि। 408-11. अनशनकर्ता की शोधि का उपाय३३४-३७. परगण में जाने की विधि। आलोचना। 338-40. तृतीय श्रिति द्वार की व्याख्या। | 412, 413. आलोचना करने के गुण। .341-55. संलेखना के प्रकार एवं उसका क्रम। | 414-20. दर्शन, ज्ञान और चारित्र सम्बन्धी 356-65. अगीतार्थ के पास भक्त परिज्ञा स्वीकार अतिचारों की आलोचना। करने का निषेध तथा उसकी हानियां।। 421, 422. शल्योद्धरण की विधि। 366-69. गीतार्थ की मार्गणा का निर्देश। | 423. आराधक कौन? 370-73. असंविग्न के पास भक्तप्रत्याख्यान का | 424-28. अनशनकर्ता के लिए निषिद्ध स्थल।