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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 189 निर्धारण में अत्यन्त श्रम करना पड़ा। व्याख्या-साहित्य के अभाव में संभव है कहीं-कहीं ग्रंथकार के मूल हार्द को नहीं पकड़ा गया हो। भाष्यकार द्वारा निर्दिष्ट कथाओं का अनुवाद भी प्रायः दूसरे व्याख्या- साहित्य से किया गया है। किसी ग्रंथ के आद्योपान्त अनुवाद का कार्य प्रथम बार किया है अतः संभव है इसमें कहीं त्रुटि रह जाए, विद्वत् समाज ज्ञान की इयत्ता को समझकर उन त्रुटियों पर ध्यान नहीं देगा। साध्वी श्री सिद्धप्रज्ञाजी ने न केवल आद्योपान्त इसका अनुवाद सुना है, अपितु अनेक स्थलों पर अपने अमूल्य सुझाव एवं क्लिष्ट स्थलों के अनुवाद का सहयोग देकर भी मुझे लाभान्वित किया है। उनके लिए मैं यही शुभकामना करती हूं कि वे भविष्य में निरामय रहकर इसी प्रकार आगम श्रुतयात्रा में सहयोगी बनती रहें। आगम-कार्य में नियोजन का इतिहास आज से 31 वर्ष पूर्व महावीर जयंती के अवसर पर युवाचार्य महाप्रज्ञ (वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञ) का प्रवास लाडनूं था। आचार्य तुलसी उस समय पंजाब यात्रा पर थे। युवाचार्यश्री ने मुमुक्षु बहिनों एवं कुछ साध्वियों की गोष्ठी आहूत की। उस समय कुछ मुमुक्षु बहिनें पारम्परिक स्नातक एवं स्नातकोत्तर के अध्ययन में नियुक्त थीं। युवाचार्यवर ने पूछा-'तुम लोग डिग्री प्राप्त करना चाहती हो या आगम-कार्य करना चाहती हो?' मुमुक्षु बहिनों एवं साध्वियों ने एक स्वर में कहा-'हम आगम-कार्य करना चाहती हैं। उस समय साध्वियों के निर्देशन में पांच मंडलियां बनाई गईं। कार्य द्रुत गति से प्रारम्भ हो गया। लगभग एक वर्ष के पश्चात् कार्य में नियुक्त कुछ बहिनों की विलक्षण दीक्षा घोषित हो गई। उसमें एक नाम मेरा भी था। दीक्षित होने के बाद भी आगम-कार्य चलता रहा। लाखों कार्ड बन गए लेकिन कुछ कारणों से वह कार्य-सम्पन्नता की दिशा में आगे नहीं बढ़ सका। कार्य स्थगित होने पर भी इससे हमारा अनुभव बढ़ा और फलस्वरूप तीन कोश सामने आ गए -एकार्थक कोश, निरुक्त कोश तथा देशीशब्द कोश।। एकार्थक कोश की सम्पन्नता के पश्चात् सन् 1984 में पूज्यवरों ने नियुक्तियों के सम्पादन-कार्य में जोड़ा। उस समय पाठ-सम्पादन क्या होता है, इसका मुझे कोई अनुभव नहीं था। मन में सोचा कि यह अत्यन्त सरल कार्य है। दो-तीन महीनों में सारा कार्य सम्पन्न हो जाएगा। लगभग दो-तीन महीनों में टीका में प्रकाशित नियुक्तियों की प्रतिलिपि करके, उनके क्रमांकों में रही त्रुटियों को ठीक करके जोधपुर चातुर्मास में पूज्यवरों को फाइलें निवेदित की। उस समय कार्य देखकर गुरुदेव ने फरमाया-" अहमदाबाद में लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर में आवश्यक नियुक्ति पर काम हुआ है, उसे देखने से कार्य को एक दिशा मिल सकती है। अहमदाबाद में फाइलें देखकर मालवणियाजी ने कहा-"हस्तप्रतियों से पाठसंपादन और गाथाओं की प्राचीनता और अर्वाचीनता के बारे में समालोचनात्मक टिप्पण के बिना पाठसंपादन का कार्य अधूरा होता है। आपका यह कार्य विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं होगा। अभी तक नियुक्ति
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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