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________________ 188 जीतकल्प सभाष्य यह मोटे अक्षरों में लिखी गई साफ-सुथरी प्रति है। इसके 60 पत्र हैं। प्रति का अंतिम पत्र खाली है। प्रति के अंत में लिपिकार ने निम्न पट्टावलि का उल्लेख किया है। इति जीतकल्पभाष्यं परिसमाप्तं संवत् 1581 वर्षे श्री पत्तननगरे श्री खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरि, श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनसागरसूरि, श्रीजिनसुंदरसूरि, पूज्य श्रीजिनहर्षसूरि पट्टे श्रीजिनचंदसूरि जीतकल्पभाष्यं समाप्तं। श्री // शुभं भवतु // छ / जीतकल्प भाष्यं अवलेख्यत // छ।' इसमें प्रति के प्रारम्भ में जीतकल्पसूत्र लिखा हुआ है, उसके बाद भाष्य की गाथाएं लिखी गई हैं। (ता) यह ताड़पत्रीय प्रति महावीर आराधना केन्द्र कोबा (अहमदाबाद) से प्राप्त है। इसका समय तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। यह प्रति 762 गाथा से प्रारम्भ है। प्रारम्भ के पत्र लुप्त हैं। इस प्रति की क्रमांक संख्या 10356 है। ताड़पत्र से जेरोक्स होने के कारण प्रति के पाठान्तर व्यवस्थित नहीं लिए जा सके। फिर भी यह साफ-सुथरी और शुद्ध प्रति है। मु-पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित जीतकल्पभाष्य। चू-जीतकल्प पर लिखी गई चूर्णि के पाठान्तर। नि-निशीथभाष्य, प्रकाशित। व्य-व्यवहारभाष्य, प्रकाशित (जैन विश्व भारती, लाडनूं) बृ-बृहत्कल्पभाष्य, प्रकाशित। पंक-पंचकल्पभाष्य, प्रकाशित / पिनि-पिण्डनियुक्ति, प्रकाशित (जैन विश्व भारती, लाडनूं) ग्रंथ का अनुवाद एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करना अत्यन्त दुरूह और जटिल कार्य है। इसे आधुनिक भाषा में स्रोतभाषा या लक्ष्यभाषा कहा जाता है। जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है, वह लक्ष्य भाषा तथा जिस भाषा की सामग्री अनुदित होती है, वह स्रोतभाषा कहलाती है। अनुवादक का स्रोत और लक्ष्यभाषाइन दोनों पर पूरा अधिकार होना चाहिए। आधुनिक विद्वानों ने अनुवाद के चार भेद किए हैं- 1. शाब्दिक अनुवाद 2. शब्द-प्रतिशब्द अनुवाद 3. भावानुवाद 4. छायानुवाद इस ग्रंथ में शाब्दिक अनुवाद के साथ भावानुवाद और छायानुवाद का भी ध्यान रखा गया है। हर संभव प्रयत्न किया गया है कि अनुवाद सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत हो तथा पाठक को ऐसा अनुभव हो कि मूल रचना ही पढ़ी जा रही है। जीतकल्प भाष्य का अनुवाद अभी तक कहीं से प्रकाशित नहीं हुआ है। इस ग्रंथ के अनुवाद में एक कठिनाई यह थी कि इस पर कोई टीका और चूर्णि नहीं थी अतः अर्थ
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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