________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 187 * प्राचीनता की दृष्टि से जहां कहीं मूल व्यञ्जनयुक्त पाठ मिला, उसे मूल में स्वीकृत किया है लेकिन पाठ न मिलने पर यकार श्रुति वाले पाठ को भी स्वीकृत किया है। जैसे तित्थगर - तित्थयर। तकारश्रुति वाले पाठ को हमने प्राथमिकता नहीं दी है, जैसे-कातो, कणतो, विणतो आदि। * लिपिकार की भूल से जहां पाठभेद हुआ है, उन पाठान्तरों का प्रायः उल्लेख नहीं किया है लेकिन जहां उस शब्द से अन्य अर्थ निकलने की संभावना थी, उन पाठान्तरों का उल्लेख किया गया है। * पाश्चात्त्य विद्वान् ल्यूमन ने दशवैकालिक एवं एल्फसडोर्फ ने उत्तराध्ययन का छंद की दृष्टि से अनेक स्थलों पर पाठ-संशोधन एवं पाठ-विमर्श किया है। छंद तकनीक को उन्होंने उपकरण के रूप में काम लिया है। जेकोबी ने छंद के आधार पर गाथा की प्राचीनता और अर्वाचीनता का निर्धारण किया है। उनके अनुसार आर्याछंद में निबद्ध साहित्य बाद का तथा वेद छंदों में प्रयुक्त गाथाएं प्राचीन हैं। सभाष्य जीतकल्प के सम्पादन में भी अनेक पाठ छंद के आधार पर निर्धारित किए हैं। गाथा में यदि आर्या के अतिरिक्त छंद का प्रयोग हुआ है तो उसका पादटिप्पण में उल्लेख कर दिया है। हस्तप्रति-परिचय * जीतकल्प भाष्य के सम्पादन में मुख्यतः इन प्रतियों एवं स्रोतों का उपयोग किया गया है(पा) यह प्रति श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर पाटण गुजरात से प्राप्त है। प्रति का लेखन समय लगभग 16 वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध होना चाहिए। इसकी क्रमांक संख्या 10056 तथा पत्र संख्या 90 है। इसके पत्र अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण हैं लेकिन प्रति के अक्षर मोटे, स्पष्ट एवं साफ-सुथरे हैं। इसके अंत में 'इति जीतकल्पभाष्यं परिसमाप्तमिति' // छ॥ का उल्लेख है। इस प्रति में जीतकल्पसूत्र की गाथाएं भाष्य गाथाओं के साथ लिखी हुई हैं। (ब) यह प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर अहमदाबाद से प्राप्त है। इसकी क्रमांक संख्या 14841 है। यह प्रति भी साफ-सुथरी एवं स्पष्ट अक्षरों वाली है। इसमें कुल 55 पत्र है, जिसमें प्रथम पत्र अनुपलब्ध है। प्रति के अंत में लगभग दो पृष्ठों की प्रशस्तिपरक भूमिका है। लिपिकार ने इसके समय के लिए 'शशिमुनितिथिमिति वर्षे' का उल्लेख किया है। जिसका तात्पर्य है यह प्रति वि. सं. 1518 में लिखी गई है। पुष्पिका का अंतिम पद्य इस प्रकार है निजमानसमोदभराद् लेखितमुत्तमविचित्ररचनाद्यं। श्रीजीतकल्पभाष्यं, जिनोदितं तच्चिरं जयतात्॥ इति प्रशस्तिः॥ (ला) यह प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर अहमदाबाद से प्राप्त है। इसकी क्रमांक संख्या 36 है।