________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 181 सम्यक्त्व स्वीकार करके दर्शन श्रावक बन जाओ अथवा इच्छानुसार रमणीय वेश धारण करो। यदि वह लिंग उतारना नहीं चाहता है तो संघ के सभी सदस्य मिलकर उसके लिंग का हरण करते हैं। कोई अकेला साधु यह कार्य नहीं करता क्योंकि इससे उसका व्यक्तिगत प्रद्वेष हो सकता है। यदि संघ में शक्ति सम्पन्न साधु न हों तो संघ उसे रात्रि में सोया छोड़कर अन्य स्थान पर चला जाता है। स्त्यानर्द्धि निद्रा वाला उसी भव में केवली हो सकता है, यह संभावना होने पर भी अनतिशायी ज्ञानी उसे पुनः लिंग नहीं देते। अतिशयज्ञानी अपने ज्ञान के बल से यह जान लेते हैं कि अब इसके इस निद्रा का उदय नहीं होगा तो वे उसे पुनः लिंग दे सकते हैं, अन्यथा नहीं देते। अन्योन्य प्रतिसेवना पाराञ्चिक ____ एक साधु का दूसरे साधु के साथ मुख और गुदा का सेवन अकल्प्य है। जो साधु यह कार्य करता है, वह अन्योन्य प्रतिसेवी कहलाता है। अन्योन्य प्रतिसेवी को लिंग पाराञ्चित दिया जाता है। यदि राजा या मंत्री आदि यह प्रतिसेवना करते हैं तो उन्हें संघ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिंग पाराञ्चित प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता। ... इस प्रायश्चित्त को चार प्रकार से दिया जाता है, इस आधार पर इसके चार भेद भी होते हैं 1. लिंग पाराञ्चित 2. क्षेत्र पाराञ्चित 3. काल पाराञ्चित 4. तप पाराञ्चित। 1. लिंग पाराञ्चित–साधु का लिंग उतारना लिंग पाराञ्चित है। कषायदुष्ट, प्रमत्त-स्त्यानर्द्धि निद्रा वाला तथा अन्योन्य प्रतिसेवी को लिंग पाराञ्चित दिया जाता है। 2. क्षेत्र पाराञ्चित -जहां दोष उत्पन्न हुआ अथवा जहां दोष उत्पन्न होगा, यह जानकर उस क्षेत्र से दूर करना क्षेत्र पाराञ्चित है। विषयदुष्ट को क्षेत्र पाराञ्चित दिया जाता है। . 3. काल पाराञ्चित-जितने काल का तप दिया जाता है, वह काल पाराञ्चित है। 4. तप पाराञ्चित-आलाप आदि दश पदों से मुक्त होकर परिहार तप वहन करना तप पाराञ्चित है। इंद्रिय दोष और प्रमाद दोष से उत्कृष्ट अपराध का सेवन करने पर भी जो सरलता से यह संकल्प स्वीकार कर लेता है कि अब ऐसा नहीं करूंगा तो उसे परिहार तप पाराञ्चित दिया जाता है। तप पाराञ्चित स्वीकर्ता मुनि में निम्न विशेषताएं होनी आवश्यक हैं-वज्रऋषभसंहनन से युक्त, वज्रकुड्य के समान धृति वाला, नवें पूर्व की आचार वस्तु के सूत्रार्थ का ज्ञाता, लघुनिष्क्रीड़ित आदि तप से भावित, इंद्रिय-विषय और कषाय का १.जीभा 2536, बृभा 5023,5024 टी पृ. 1341,1342 / ४.जीभा 2546 / 2. बृभा 5026 टी पृ. 1342 / / 5. जीसू 100 / 3. बृभा 5027 टी पृ. 1342 / /