________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 171 इसी प्रकार सूत्राष्टिका वस्त्र आदि ग्रहण करना उपधि स्तैन्य है। माता-पिता आदि ज्ञातिजनों से पूछे बिना अप्राप्तवय पुरुष को दीक्षित करना गृहस्थ सम्बन्धी सचित्त स्तैन्य है। जिसके कोई माता-पिता आदि अभिभावक न हों, अपरिगृहीत हो तथा बाल, जड्ड आदि दोष से रहित हो तो अव्यक्त को भी दीक्षित करना कल्प्य है। नारी प्रायः अपरिगृहीत नहीं होती। उसके पिता या पति से पूछे बिना दीक्षा देना स्तैन्य है। अदत्त या अपरिगृहीत नारी को दीक्षित करना कल्प्य है, जैसे-करकंडु की माता पद्मावती तथा क्षुल्लककुमार की माता यशोभद्रा। स्तैन्य ग्रहण के अपवाद __आहार के सम्बन्ध में भाष्यकार एक अपवाद बताते हुए कहते हैं कि स्वलिंगी के यहां पहले देहली पर भोजन की याचना करनी चाहिए, उनके द्वारा न देने पर बलात् भी ग्रहण किया जा सकता है। दुर्गम मार्ग या दुर्भिक्ष आदि कारणों से अदत्त आहार भी ग्रहण किया जा सकता है। आपवादिक स्थिति में सारी उपधियों की चोरी हो जाने पर अदत्त उपधि ग्रहण की जा सकती है। यदि अन्यतीर्थिक दारुण या दुष्ट स्वभाव के हैं तो प्रच्छन्न रूप से भी उपधि आदि ग्रहण की जा सकती है। परलिंगियों से आगाढ़ स्थिति में यदि याचना करने पर आहार आदि नहीं मिलता है तो प्रच्छन्न रूप से अदत्त ग्रहण किया जा सकता है। गृहस्थों से भी आपवादिक स्थिति में अदत्त ग्रहण किया जा सकता है।' शैक्ष अपहरण में अपवाद भाष्यकार के अनुसार आपवादिक स्थिति में पूर्वगत और कालिकानुयोग के अंशों का विच्छेद होने की स्थिति आ जाए, उसका ज्ञान किसी अन्य साधु को न हो तो उस ज्ञान की अव्यवच्छित्ति के लिए ग्रहण और धारणा में समर्थ शिष्य को भक्तपान आदि के माध्यम से विपरिणत किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में गृहस्थ तथा अन्यतीर्थिक के बालक अथवा बालिका का भी अपहरण किया जा सकता है। यदि संघ में कोई आचार्य पद धारण करने योग्य साधु न हो अथवा संघ के आचार्य अभ्युद्यत मरण अथवा गुरुविहार स्वीकार कर रहे हों तो शैक्ष का अपहरण कल्प्य है। जब अपहृत शैक्ष प्रावचनिक बन जाए, गुरु के कालगत होने पर गण को धारण करे, उस समय गण में अन्य शिष्य निष्पन्न हो जाए तो फिर उसकी स्वयं की इच्छा है कि वह वहां रहे या न रहे। यदि निष्कारण ही शैक्ष का अपहरण हो तो वह स्वयं पूर्व आचार्य के पास चला जाए। 1. जीभा 2360-63 / समय की विशेष परिस्थितियों की ओर संकेत करते हैं। 2. बृभा 5098 / वर्तमान में ये अपवाद विमर्शनीय हैं। 3. जीभा 2364, बुभा 5099, कथा के विस्तार हेतु देखें ५.जीभा 2369, 2370 / परि.२, कथा सं.५६,५७। 6. जीभा 2345-49, बृभा 5082-84 टी पृ. 1355, 4. जीभा 2365-67, भाष्य में उल्लिखित ये अपवाद उस 1356 /