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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 169 3. निगूहना वचन -शैक्ष को किसी स्थान पर छिपा देना। 4. व्याप्त करना -उसे किसी अन्य कार्य में लगा देना। 5. झंपना —पलाल आदि से ढ़क देना। 6. प्रस्थापन -किसी अन्य ग्राम में उसे प्रस्थित कर देना।' __ जिसके दाढ़ी मूंछ नहीं आई है, ऐसा अव्यक्त शैक्ष जिसका सहायक किसी कारणवश भक्तपान आदि लेने गया हो, उसको अपनी ओर आकृष्ट करने की दृष्टि से भक्तपान देने पर गुरुमास, धर्मकथा करने पर चतुर्लघु, निगूहन वचन बोलने पर चतुर्गुरु, व्याप्त करने पर षड्लघु, झम्पन –ढ़कने पर षड्गुरु तथा प्रस्थापन–स्वयं हरण करने पर छेद प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। व्यक्त शैक्ष के अपहरण सम्बन्धी पदों में साधु को चतुर्लघु से मूल पर्यन्त, उपाध्याय को चतुर्गुरु से अनवस्थाप्य पर्यन्त तथा आचार्य को षड्लघु से पाराञ्चित पर्यन्त प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। / ____ यदि कोई असहाय या एकाकी शैक्ष अमुक आचार्य के पास दीक्षित होने का संकल्प लेकर जा रहा हो, साधु को ज्ञात हो जाए कि यह अमुक आचार्य के पास जा रहा है। वहां यदि अव्यक्त शैक्ष को भक्तपान अथवा धर्मकथा आदि करे तो भक्तपान प्रदान करने का गुरुमास तथा धर्मकथा करने का चतुर्लघु प्रायश्चित्त आता है। असहाय और एकाकी शैक्ष होने से शेष निगूहन आदि चार पद वहां नहीं होते। इसी प्रकार स्त्री शैक्ष के अपहरण के बारे में जानना चाहिए।' . व्यक्त या अव्यक्त शैक्ष को अपहृत करने में निम्न दोष होते हैं - 1. आज्ञाभंग 2. अनंतसंसार की वृद्धि 3. बोधि-दुर्लभता 4. साधर्मिक स्तैन्य 5. प्रमत्त साधु की प्रान्त देवता द्वारा छलना 6. आपसी * कलह / अन्यधार्मिक स्तैन्य प्रतिसेवना अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का दूसरा कारण है-अन्यधार्मिक अथवा परधार्मिक स्तैन्य। यह दो प्रकार का होता है-लिंगप्रविष्ट तथा गृहस्थ / इन सबका स्तैन्य भी साधर्मिक स्तैन्य की भांति तीन प्रकार का होता है-आहार, उपधि तथा शैक्ष आदि। लिंग प्रविष्ट आहार स्तैन्य .कोई आहार लोलुप मुनि बौद्ध भिक्षुओं के जीमनवार में बौद्ध लिंग धारण करके भोजन करता है 1. जीभा 2339, बृभा 5076 / / . 2. जीभा 2340, बृभा 5077 / 3. जीभा 2341, 2342, बृभा 5078 / 4. बृभा 5080 / ५.जीभा 2344 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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