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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श / 163 इसी प्रकार छेद में भी पांच से कम और छह मास से अधिक पर्याय का छेद नहीं किया जाता। यदि चिरप्रव्रजित का छह माह से अधिक दीक्षा-पर्याय छेद किया जाता है तो वह मूल के अन्तर्गत ही आता है अतः कुछ आचार्य प्रायश्चित्त आठ ही मानते हैं। कुछ आचार्य ऐसा भी मानते हैं कि जब तक सम्पूर्ण व्रतपर्याय का छेद न हो, तब तक छेद प्रायश्चित्त तथा सर्व पर्याय का छेद होने पर मूल प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। तीन बार छेद प्रायश्चित्त देने के बाद भी यदि साधु पुनः प्रतिसेवना करता है तो उसे तीन बार मूल दिया जाता है। पुनः प्रतिसेवना करने पर तीन बार अनवस्थाप्य तथा पुनः अपराध करने पर एक बार पाराञ्चित प्रायश्चित्त दिया जाता है। निशीथचूर्णि में इस संदर्भ में विस्तृत वर्णन है।' छेद और मूल में मुख्य अंतर यह है कि छेद चिरघाती है। इसमें चिरकाल तक दीक्षा-पर्याय का छेद होता है, मूल सद्योघाती है, यह तत्काल दीक्षा-पर्याय को समाप्त कर देता है। छेद प्रायश्चित्त के प्रकार छेद दो प्रकार का होता है-१. देशछेद और 2. सर्वछेद। पांच अहोरात्र से छह मास पर्यन्त पर्याय का छेद देशछेद कहलाता है तथा मूल, अनवस्थाप्य और पाराञ्चित –इन तीनों का समावेश सर्वछेद प्रायश्चित्त के अन्तर्गत होता है। अंतिम तीनों प्रायश्चित्तों में श्रमण-पर्याय का एक साथ छेद होता है। यदि अंतिम तीन प्रायश्चित्तों का सर्वछेद में समावेश कर दिया जाए तो प्रायश्चित्त के सात ही प्रकार होते हैं। छेद प्रायश्चित्त के अपराध-स्थान छेद प्रायश्चित्त के अपराध-स्थान इस प्रकार हैं. * जानते हुए पञ्चेन्द्रिय का घात करने पर। * दर्प से मैथुन सेवन करने पर। * शेष मृषावाद, अदत्तादान तथा परिग्रह आदि की बिना कारण उत्कृष्ट प्रतिसेवना करने पर। * संघ सम्बन्धी आगाढ़ प्रयोजन उपस्थित होने पर भी संघीय कार्य न करने पर। 1. बृभा 707 / २.बृभा 711 / 3. जीचू पृ. 27 / 4. निभा 6538 तवतिगं छेदतिगं, मूलतिगं अणवट्ठाणतिगं च। चरिमं च एगसरयं, पढमं तववज्जियं बितियं / / 5. निचू 4 पृ. 352 / 6. बृभा 711; चिरघाई वा छेओ, मूलं पुण सज्जघाई उ। 7. बृभा 710 दुविहो अ होइ छेदो, देसच्छेदो अ सव्वछेदो अ। मूला-ऽणवट्ठ-चरिमा, सव्वच्छेओ अतो सत्त।। 8. जीसू 83 / 9. आगाढम्मि य कज्जे, दप्पेण वि ते भवे छेदो।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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