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________________ 156 जीतकल्प सभाष्य / वादी पारिहारिक के प्रायश्चित्त में कमी वादी का निग्रह करना भी संघ की सेवा है। यदि पारिहारिक वादी का निग्रह करने हेतु राजसभा जाता है, उस समय प्रवचन की जुगुप्सा न हो इसलिए वह पैर धोता है, दंत-प्रक्षालन करता है, वाक्-पाटव एवं मेधा-वृद्धि के लिए प्रणीत आहार करता है, आन्तरिक उत्साह बढ़ाने हेतु वातिकमदिरा आदि पदार्थों का सेवन करता है, सभा में विजय प्राप्त करने के लिए शुक्ल वस्त्र धारण करता है, इन सब प्रतिसेवनाओं को जानकर आगमव्यवहारी उसे कहते हैं कि पहले तुमको दोष सेवन पर पारिहारिक तप दिया था लेकिन अब भविष्य में तुम ऐसा अपराध मत करना। तुमने परवादी का निग्रह करके प्रवचन की प्रभावना की है अतः तुम्हें अल्प प्रायश्चित्त दिया जाता है अथवा प्रायश्चित्त से मुक्त भी कर दिया जाता है। पारिहारिक का मार्ग में अवस्थान पारिहारिक संघीय या अन्य कारण उपस्थित होने पर अन्यत्र जाए तो निम्न छह कारणों से वह बीच में रुक सकता है• मार्ग में स्वयं ग्लान हो जाए अथवा अन्य किसी ग्लान साधु को देखे या सुने तो उसकी परिचर्या के लिए। * वर्षा या नदी का पूर आ जाने पर। * किसी के द्वारा सूत्रार्थ की पृच्छा करने पर। * किसी विशिष्ट विद्याधर या निमित्तज्ञ से निमित्त सीखने हेतु। * अनेक साधु आगाढ़ योग में प्रविष्ट हों, उस समय उनको वाचना देने वाले आचार्य के कालगत होने पर उन्हें वाचना देने के लिए। * मार्ग में ऐसा ग्रंथ मिलने पर, जिसे पढ़ने से प्रज्ञा का स्फुरण हो जाए तो उसे पढ़ने की इच्छा से। परिहार तप प्रायश्चित्त के स्थान * कुल और श्रुत से असदृश मुनि को आचार्य बनाने पर। * चिकित्साकाल में मनोज्ञ आहार का आसक्ति से सेवन करने पर। * गण द्वारा असम्मत और अप्रीतिकर शिष्य को आचार्य पद पर नियुक्त करने पर। * निष्कारण प्रतिसेवना तथा कारण होने पर अयतना से प्रतिसेवना करने पर। 1. बृभा 6034-36 टी पृ. 1592, 1593 / २.व्यभा 706 / ३.व्यभा 1334, 1335 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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