________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श * साधु के प्रति प्रद्विष्ट राजा द्वारा किसी साधु को मारने-पीटने का प्रसंग हो। * दुर्भिक्ष आदि के कारण आहार-प्राप्ति न हो। * किसी साधु ने अनशन किया हो और उसके लिए निर्यापक की आवश्यकता हो। * कोई आचार्य ग्लान हो गए हों। * राजा आदि के द्वारा किसी साधु या साध्वी को उत्प्रव्रजित करके बंदी बना रखा हो। * अन्य मतावलम्बी शास्त्रार्थ करना चाहता हो।' इन परिस्थितियों में आचार्य कहते हैं कि इस पारिहारिक के अतिरिक्त अन्य कोई साधु ऐसा नहीं है, जो वादी का निग्रह कर सके या अन्य प्रयोजन सिद्ध कर सके, उस समय पारिहारिक स्वयं भी निवेदन कर सकता है कि उस वादी को मैंने शास्त्रार्थ में अनेक बार हराया है अतः आप अनुज्ञा दें तो मैं वहां जाऊं। प्रश्न उपस्थित होता है कि दुष्कर परिहारतप वहन करने वाले को बीच में ही तप स्थगित करके अन्यत्र क्यों भेजा जाता है? इसका समाधान देते हुए आचार्य कहते हैं कि तीक्ष्ण और तीक्ष्णतर कार्य उपस्थित होने पर पहले तीक्ष्णतर कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। यदि दो महत्त्वपूर्ण कार्य एक साथ उपस्थित हो जाएं तो कार्य की गुरुता और लघुता का चिन्तन करके जो कार्य संघ के लिए हितकारी हो, उसे पहले करना चाहिए। इसी बात को दृष्टान्त से समझाते हुए भाष्यकार कहते हैं कि व्रण-चिकित्सा के समय यदि बीच में किसी को धनुग्रहवात जैसी घातक बीमारी हो जाए तो कुशल वैद्य पहले उस व्याधि की चिकित्सा करते हैं, तत्पश्चात् उस व्रण का शमन करते हैं। इसी प्रकार अनेक कार्य होने पर भी संघ कार्य को पहले करना चाहिए। यदि शक्ति होने पर भी मुनि संघ-कार्य के लिए उपस्थित नहीं होता तो चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। परिहार तप का झोष-क्षपण असमर्थ पारिहारिक गुरु के कहने पर तप को छोड़ देता है अथवा आचार्य उसे अवशिष्ट तप से मुक्त कर देते हैं। जिस पारिहारिक ने अभी तप प्रारम्भ ही किया है, सारा ही तप शेष है तो समर्थ पारिहारिक मार्ग में तप-वहन की बात कहता है अथवा प्रसन्न होकर गुरु उसे सम्पूर्ण तप से मुक्त कर देते हैं। गुरु यदि प्रायश्चित्त से मुक्त न करें तो प्रयोजन सम्पन्न कर अपने क्षेत्र में आकर देशभाग अथवा सर्वभाग प्रायश्चित्त को पूरा करता है। 1. व्यभा 694, 695 मटी प. 71 / २.व्यभा 696, 697 / 3. व्यभा 698-701 / 4. व्यभा 1655 / 5. देशभाग और सर्वभाग की व्याख्या हेतु देखें इसी ग्रंथ की भूमिका पृ. 184, 185 / 6. व्यभा 765,766 /