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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 149 तुम लोग इसकी साधना में किसी प्रकार का व्याघात मत डालना। 2. प्रतिपृच्छा-यह पारिहारिक सूत्र और अर्थ से सम्बन्धित कोई भी प्रश्न तुमसे नहीं पूछेगा और तुम भी इससे कुछ भी नहीं पूछ सकते। 3. परिवर्तना–यह तुम्हारे साथ किसी भी प्रकार के सूत्रार्थ का परावर्तन नहीं करेगा और तुम भी इसके साथ परिवर्तना नहीं करोगे। 4. उत्थान-काल-वेला में न यह तुम्हें उठाएगा और न ही तुम इसे उठाओगे। 5. वंदन-न यह तुम्हें वंदन करेगा और न ही तुम इसको वंदन करोगे। 6. मात्रक-आनयन-न यह तुम्हें मात्रक लाकर देगा और न ही तुम इसे लाकर दोगे। 7. प्रतिलेखन-यह तुम्हारे किसी भी उपकरण की प्रतिलेखना नहीं करेगा, तुम भी इसकी प्रतिलेखना नहीं करोगे। 8, संघाटक-इससे तुम्हारा तथा तुम्हारा इससे संघाटक नहीं होगा। 9. भक्तदान –यह तुम्हें भक्तपान लाकर नहीं देगा और तुम भी इसे भक्तपान लाकर नहीं दोगे। जिस दिन भिक्षु परिहार तप प्रायश्चित्त स्वीकार करता है, उस दिन आचार्य उसे एक घर से आहार दिला सकते हैं, उस दिन के बाद विशेष परिस्थिति के अलावा उसे आहार-पानी न दे सकते हैं और न दिला सकते हैं। 10. सहभोजन-यह तुम्हारे साथ भोजन नहीं करेगा और तुम भी इसके साथ भोजन नहीं करोगे।' व्यवहार सूत्र के अनुसार यदि अनेक पारिहारिक और अनेक अपारिहारिक मुनि एक दिन यावत् छह मास भी साथ रहें तो भी वे सहभोजन नहीं कर सकते। इस संदर्भ में बृहत्कल्पभाष्य में एक अपवाद का वर्णन है। परिहारतप स्वीकार करने के पश्चात् विपुल अशन-पान देखकर उसके मन में यदि खाने की इच्छा हो जाए तो आचार्य उसके भावों को देखकर सोचते हैं कि यदि यह एक बार प्रणीत आहार कर लेगा तो सुखपूर्वक अग्रिम परिहार तप वहन कर सकेगा अतः अतिशयज्ञानी या आचार्य उसके भावों को जानकर इंद्र महोत्सव आदि के दिन प्रणीत भोजन वाले जीमनवार में ले जाते हैं, यदि पारिहारिक असमर्थ हो तो गुरु स्वयं उसे प्रणीत आहार लाकर देते हैं, इससे उसकी तृप्ति हो जाती है। वह शेष प्रायश्चित्त को सुखपूर्वक वहन करता है। उस दिन के बाद पारिहारिक को भक्तपान नहीं देते। छहमासिक परिहार तप पूरा होने पर . १.अजानकारी में अन्य गण से आगत भिक्षु उसे वंदना कर लेता है। (जीभा 2457) २.जीभा 2441, 2442, व्यभा 549, 550 / ३.व्यसू 2/27 / 4. बृभा 5602-07 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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