________________ 146 जीतकल्प सभाष्य एकासन, उपाध्याय को आयम्बिल तथा आचार्य को उपवास प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।' * प्रतिदिन यथाशक्ति प्रत्याख्यान ग्रहण न करने पर क्षुल्लक को एकासन, भिक्षु को आयम्बिल, स्थविर को उपवास, उपाध्याय को बेला तथा आचार्य को तेले के तप का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। कहीं-कहीं वस्तुभेद से भी प्रायश्चित्त में अन्तर आता है• जघन्य उपधि खोने पर उसकी शोधि हेतु एकासन, मध्यम उपधि खोने पर आयम्बिल तथा उत्कृष्ट उपधि खोने पर उपवास प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। सर्व उपधि खोने पर उसकी शोधि बेले के तप से होती * तीनों प्रकार की उपधि की प्रतिलेखना विस्मृत होने पर उसकी शोधि क्रमशः निर्विगय, पुरिमार्ध और एकासन से होती है तथा सर्व उपधि की प्रतिलेखना विस्मृत होने पर या आचार्य को निवेदन न करने पर आयम्बिल प्रायश्चित्त से शोधि होती है। * गुरु-आज्ञा के बिना जघन्य उपधि अन्य साधु को देने पर जीतव्यवहार से उसकी शोधि एकासन से, मध्यम उपधि देने पर आयम्बिल से, उत्कृष्ट उपधि देने पर उपवास से तथा सर्व उपधि देने पर बेले के तप से शोधि होती है। शुद्ध तप प्रायश्चित्त के संक्षिप्त वर्णन के पश्चात् अब परिहार तप प्रायश्चित्त का वर्णन किया जा रहा हैपरिहार तप की योग्यता ___ जिस साधु को परिहार तप दिया जाता है, उसकी निम्न बिन्दुओं से परीक्षा की जाती है• पृच्छा-अपने गण के साधु से पृच्छा नहीं की जाती क्योंकि वह सबके लिए परिचित होता है। अन्य गण से आगत मुनि की गीतार्थता आदि इंगित और आकार से जान ली जाती है तो पृच्छा नहीं की जाती। अपरिचित आगंतुक साधु से पूछा जाता है कि तुम गीतार्थ हो या अगीतार्थ? यदि वह उत्तर में गीतार्थ बताता है तो उससे आगे पूछा जाता है कि तुम कौन सा तप कर सकते हो? धृति-संहनन में दुर्बल हो या सबल? स्थिर हो अथवा अस्थिर? तपस्या में कृतयोगी हो या अकृतयोगी? यदि आगंतुक कृतयोगी हो तो उसे परिहार तप तथा अकृतयोगी को शुद्ध तप का प्रायश्चित्त दिया जाता है। * पर्याय-परिहार तप प्रायश्चित्त वहन कर्ता की जन्म पर्याय जघन्यतः उनतीस वर्ष तथा श्रमण पर्याय बीस वर्ष की होनी चाहिए। उत्कृष्ट रूप से दोनों ही पर्याय देशोन पूर्वकोटि हो सकती हैं। * सूत्रार्थ-उसका सूत्रार्थ जघन्यत: नवें पूर्व की तृतीय आचार वस्तु तथा उत्कृष्टत: कुछ कम दश पूर्व होना 1. जीभा 1060, 1061 / 4. जीभा 1737 / 2. जोभा 1754 / 5. जीभा 1735 / 3. जीभा 1736 / 6. जीभा 1741 /