________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 145 * अष्टमी और पक्खी के दिन उपवास न करने पर। * आहार का अविधिपूर्वक परिष्ठापन करने पर। * आहार आदि का संवरण न करने पर।' * नवकारसी न करने पर। * अचित्त लहसुन तथा प्याज ग्रहण करने पर। * बछड़े को बंधनमुक्त करने पर। पणग--निर्विगय के स्थान * वसति से बाहर जाते समय 'आवस्सही' और प्रवेश के समय 'निस्सिही' का उच्चारण न करने पर।' * गुरु को प्रणाम न करने पर। * विकथा आदि के कारण कालातिक्रान्त आहार रखने पर। * दीर्घकालिक रोग की स्थिति में आधाकर्म फल आदि का सेवन करने पर। * दुष्प्रतिलेखन अथवा दुष्प्रमार्जन करने पर। * विहार से आकर पैरों का प्रमार्जन या प्रत्युपेक्षा न करने पर।१२ बेला-(दो उपवास ) के स्थान• गुड़, घृत, तेल आदि गीली वस्तुओं के बासी रहने पर / 23 * प्रमादी साधु के रजोहरण खोने या नष्ट होने पर।१४ तेला (तीन उपवास) के स्थान- * दिन में गृहीत रात्रि में भुक्त, रात्रि में गृहीत दिन में भुक्त, रात्रि में ग्रहण तथा रात्रि में भोग-इन तीनों भंगों की शोधि तेले के तप से होती है। ___ कहीं-कहीं पुरुष भेद से भी प्रायश्चित्त-प्राप्ति में भेद होता है * संयम में डांवाडोल साधु के प्रति प्रशस्त स्थिरीकरण न करने पर भिक्षु को पुरिमार्ध, वृषभ को .१.व्यभा 133 / २.जीभा 1745 / 3. जीभा 1748 / 4. जीभा 1749 / ५.जीभा 1766 / ६.जीभा 1767 / - ७.व्यभा 125 / 8. व्यभा 125 / 9. जीभा 1744 / १०.जीभा 1782 / 11. जीभा 1789 / १२.व्यभा 126 / 13. जीभा 1084 / 14. जीभा 1743 /