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________________ 144 . जीतकल्प सभाष्य * मार्गातिक्रान्त आहार का परिभोग करने पर। * बिना कारण दिन में सोने पर। * पक्ष अथवा चातुर्मास के व्यतीत होने पर भी क्रोध रहने पर। * दौड़ प्रतियोगिता करने पर। * चौपड़, चौरस, जूआ आदि खेल खेलने पर। * कोयल, मयूर, बिल्ली आदि की आवाज निकालने पर। * वर्तमान तथा भविष्य सम्बन्धी निमित्त कथन करने पर।" चतुर्लघु-आयम्बिल के स्थान * चार काल की सूत्र पौरुषी न करने पर। * सर्वथा कायोत्सर्ग न करने पर। * पर्व तिथियों में अन्य उपाश्रय में स्थित मुनियों को वंदना न करने पर। * अतिप्रमाण आहार करने पर।११ गुरुमास-एकासन के स्थान• स्थापना कुल में गुरु से पूछे बिना प्रवेश करके भक्तपान ग्रहण करने पर।१२ * वीर्य का गोपन करने पर। लघुमास-पुरिमार्थ के स्थान * अर्थ पौरुषी न करने पर। * स्वाध्याय, कायोत्सर्ग एवं प्रतिलेखना न करने पर।५ 1. जीभा 1745 / 2. जीभा 1762 / 3. जीभा 1763, 1764 / 4. जीसू 45 / 5. जीभा 1723 / 6. जीभा 1725 / 7. जीभा 1683 / 8. व्यभा 130 / 9. व्यभा 131 / 10. व्यभा 133 / 11. जीसू 38 12. जीभा 1775 / १३.जीसू 56; भाष्यकार के अनुसार यह प्रायश्चित्त जीत व्यवहार के आधार पर है। श्रुतव्यवहार के अनुसार अन्यथा प्रायश्चित्त भी दिया जा सकता है। 14. सूत्र पौरुषी न करने पर गुरुमास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। अर्थ सूत्र के अधीन होता है। सूत्रपौरुषी यथाशक्ति सबको करनी पड़ती है। सूत्र के अभाव में सर्वस्व का अभाव हो जाता है इसलिए सूत्र पौरुषी अर्थ पौरुषी से महत्त्वपूर्ण है। (व्यभा 130, मटी प.४५) 15. व्यभा 129 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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