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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 143 यथालघुक बीस दिन आचाम्ल 7. लघुस्वक पन्द्रह दिन एक स्थान 8. लघुस्वतरक दस दिन पूर्वार्द्ध 9. यथालघुस्वक पांच दिन निर्विगया गुरु प्रायश्चित्त के तीन भेद होते हैं। उनमें तप का क्रम इस प्रकार होता है१. जघन्य गुरु प्रायश्चित्त- एक मासिक और दो मासिक। 2. मध्यम गुरु प्रायश्चित्त- त्रैमासिक और चातुर्मासिक। 3. उत्कृष्ट गुरु प्रायश्चित्त-पंचमासिक और षाण्मासिक। 4. जघन्य लघु प्रायश्चित्त-बीस दिन। 5. मध्यम लघु प्रायश्चित्त-भिन्नमास। 6. उत्कृष्ट लघु प्रायश्चित्त-लघुमास। 7. जघन्य लघुस्वक प्रायश्चित्त-पांच दिन। 8. मध्यम लघुस्वक प्रायश्चित्त-दस दिन / 9. उत्कृष्ट लघुस्वक प्रायश्चित्त-पन्द्रह दिन। भाष्यकार ने सभी ऋतुओं के आधार पर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तथा इनमें भी उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य के आधार पर तप प्रायश्चित्त का वर्णन किया है।' जीतव्यवहार के आधार पर तप प्रायश्चित्त .. तप प्रायश्चित्त में पणग (निर्विगय) से लेकर चतुर्गुरु (उपवास) तक के प्रायश्चित्त उल्लिखित हैं। भाष्यकार ने दैनिक व्यवहार में होने वाले सैकड़ों छोटे-छोटे अतिचारों का जीतकल्प के आधार पर तप प्रायश्चित्त निर्धारित किया है। यह सारा वर्णन उन्होंने गा. 1022-1813 तक की गाथाओं में किया है। विस्तारभय से यहां उनका वर्णन नहीं किया जा रहा है। इनमें पिण्डैषणा के दोषों से सम्बन्धित प्रायश्चित्तों का पिण्डनियुक्ति की भूमिका में वर्णन किया गया है। (देखें पिण्डनियुक्ति की भूमिका पृ. 129-36) यहां उदाहरणस्वरूप कुछ अतिचारों के तप का संकेत किया जा रहा हैचतुर्गुरु-उपवास प्रायश्चित्त के स्थान• सौंठ, बेहड़ा आदि शुष्क औषधि बासी रहने पर। १.जीभा 1838-43 / 2. जीभा 1848, 1849 / ३.जीभा 1826-1935 / 4. जीभा 1083 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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