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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 133 सोलह प्राणायाम प्रतिदिन एक मास तक करने से ब्रह्मघाती भी शुद्ध हो जाता है। याज्ञवल्क्य ने उपपातक तथा सभी अनिर्दिष्ट पापों की शुद्धि हेतु सौ प्राणायाम का निर्देश किया है। ___ एक श्वास का कालमान श्लोक के एक चरण जितना होता है। उसी के आधार पर प्रायश्चित्त के श्वासोच्छ्वास पूरे किए जाते हैं। चार उच्छ्वास में एक श्लोक का चिंतन होता है। चतुर्विंशतिस्तव के छह श्लोकों के 24 चरण होते हैं और एक चरण चंदेसु निम्मलयरा' का मिलाने से 25 चरण होते हैं। प्रायश्चित्त रूप 'लोगस्स' में प्रायः पूरा लोगस्स किया जाता है। प्रायश्चित्त प्राप्ति में जघन्य आठ श्वासोच्छ्वास का तथा उत्कृष्ट एक हजार आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग होता है। दिगम्बर परम्परा में पूरे नमस्कार महामंत्र के उच्चारण में तीन उच्छ्वास काल प्रमाण होता है। प्रतिक्रमण में उच्छ्वास और लोगस्स का प्रमाण प्रतिक्रमण में कायोत्सर्ग का श्वासोच्छ्वास प्रमाण नियत होता है लेकिन दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा में इनके प्रमाण में अंतर है, वह इस प्रकार हैंप्रतिक्रमण .. आवनि मूलाचार भआ विजयोदया रात्रिक प्रतिक्रमण पचास चौपन पचास दैवसिक प्रतिक्रमण एक सौ आठ पाक्षिक प्रतिक्रमण तीन सौ तीन सौ तीन सौ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण पांच सौ चार सौ चार सौ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण एक हजार आठ पांच सौ श्वासोच्छ्वास का प्रमाण लोगस्स के साथ होता है। दैवसिक प्रतिक्रमण के चार, रात्रिक के दो, पाक्षिक के बारह, चातुर्मासिक के बीस तथा वार्षिक प्रतिक्रमण के चालीस लोगस्स (चतुर्विंशतिस्तव) होते हैं। इनका श्लोक प्रमाण इस प्रकार होता है-दैवसिक प्रतिक्रमण में पच्चीस, रात्रिक में साढ़े बारह, पाक्षिक में पचहत्तर, चातुर्मासिक में एक सौ पच्चीस तथा वार्षिक में दो सौ बावन श्लोक होते हैं। दिगम्बर परम्परा में नमस्कारमंत्र के साथ श्वासोच्छ्वास का काल प्रमाण होता है। एक सौ आठ श्वासोच्छ्वास के लिए छत्तीस नमस्कार महामंत्र का जाप करना होता है। सौ पांच सौ 1. मनु 11/248 / 2. याज्ञ 3/305; प्राणायामशतं कार्य सर्वपापापनुत्तये। उपपातकजातानां, नादिष्टस्य चैव हि / / 3. आवनि 1027, व्यभा 121 / 4. पंकभा 1121 / 5. आवनि 1028, 1029 / 6. मूला 659, 660 7. भआ 118 विटी पृ. 162 / 8. आवनि 1030 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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