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________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 131 3. यतनापूर्वक ऊर्ध्व वात तथा पुतकर्षण पूर्वक अधो वातनिसर्ग करना। 4. पित्तजनित मूर्छा आने पर बैठना। 5. शरीर में सूक्ष्म अंग-संचार तथा श्लेष्म संचार। 6. नैसर्गिक आंखों का संचार। कायोत्सर्ग में मुनि प्रयत्नपूर्वक उन्मेष-निमेष नहीं करता। एकरात्रिकी प्रतिमा में स्थित साधु अनिमेष नयनों से पूरी रात कायोत्सर्ग करते हैं।' इसके अतिरिक्त अग्नि, छेदन, भेदन, चोर का भय, सर्पदंश आदि अपवादों में होने वाली अस्थिरता का अपवाद रहता है। कायोत्सर्ग के दोष ____ आवश्यक नियुक्ति में कायोत्सर्ग के इक्कीस दोष निर्दिष्ट हैं१. घोटक–अश्व की भांति पैरों को विषम स्थिति में रखकर कायोत्सर्ग करना। 2. लता-हवा से प्रेरित लता की भांति प्रकम्पित होकर कायोत्सर्ग करना। 3. स्तम्भ-खम्भे का सहारा लेकर कायोत्सर्ग करना। 4. कुड्य-दीवार का सहारा लेकर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना। 5. माल-ऊपर की छत से सिर को सटाकर कायोत्सर्ग करना। 6. शबरी-नग्न भीलनी की भांति अपने गुह्य प्रदेश को हाथ से ढ़ककर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना। 7. बहू-कुलवधू की भांति सिर को नमाकर कायोत्सर्ग करना। 8. निगड़-पैरों को सटाकर या चौड़ा करके खड़े होकर कायोत्सर्ग करना। 9. * लम्बोत्तर–चोलपट्ट को नाभि के ऊपर बांधकर नीचे घुटनों तक रखकर कायोत्सर्ग करना। 10. स्तनदृष्टि-दंश मशक से बचने अथवा अज्ञान से चोलपट्ट को स्तनों तक बांधकर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना। 11. उद्धि-यह दोष दो प्रकार से होता है। एड़ियों को सटाकर, पंजों को फैलाकर खड़े होकर कायोत्सर्ग * करना बाह्य उद्धिका तथा दोनों पैरों के अंगूठे को सटाकर, एड़ियों को फैलाकर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना आभ्यन्तरिका उद्धिका है। 12. संयती-सूती कपड़े या कम्बल से शरीर को साध्वी की भांति ढककर कायोत्सर्ग करना। 13. खलीन-रजोहरण को आगे करके खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना। 14. वायस-काक की भांति दृष्टि को घुमाते हुए कायोत्सर्ग करना। 1. आवनि 1024; न कुणइ निमेसजत्तं, तत्थुवयोगे न झाण झाएज्जा। एगनिसिं तु पवन्नो, झाति सह अनिमिसच्छो वि।।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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