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________________ 116 जीतकल्प सभाष्य योग प्रतिक्रमण, इंद्रिय प्रतिक्रमण, शरीर प्रतिक्रमण और कषाय प्रतिक्रमण आदि। ... कषाय पाहुड के अनुसार सर्वातिचार और त्रिविध आहार त्याग रूप प्रतिक्रमण उत्तमार्थ प्रतिक्रमण में समाविष्ट होते हैं। शेष रात्रिक आदि प्रतिक्रमण ईर्यापथिक प्रतिक्रमण में अन्तर्भूत हो जाते हैं इसलिए प्रतिक्रमण के सात ही भेद होते हैं। प्रकारान्तर से भगवती आराधना की विजयोदया टीका में प्रतिक्रमण के तीन भेद उल्लिखित हैं• मनः प्रतिक्रमण किए हुए अतिचारों की मन से आलोचना करना मानसिक प्रतिक्रमण है। * वाक्य प्रतिक्रमण-प्रतिक्रमण के सूत्रों का उच्चारण करना वाक्य प्रतिक्रमण है। * काय-प्रतिक्रमण-शरीर के द्वारा दुष्कृत्य नहीं करना काय प्रतिक्रमण है।'. प्रतिक्रमण किसका? आवश्यक नियुक्ति में प्रतिक्रमण, प्रतिक्रामक और प्रतिक्रमितव्य-इन तीन शब्दों का उल्लेख मिलता है। प्रतिक्रमितव्य अर्थात् प्रतिक्रमण करने योग्य तत्त्व। आवश्यक सूत्र में एक से लेकर 32 संख्या तक प्रतिक्रान्तव्यों का वर्णन है, जैसे-एकविध असंयम, द्विविध बंधन-रागबंधन, द्वेषबंधन, त्रिविध दण्ड-मनः दण्ड, वचन दण्ड और कायदण्ड, चतुर्विध कषाय आदि। नियुक्तिकार के अनुसार प्रतिक्रान्तव्य तत्त्व ये हैं * मिथ्यात्व से सम्यक्त्व की ओर। * असंयम से संयम की ओर। * कषाय से अकषाय की ओर। * अप्रशस्तयोग से प्रशस्तयोग की ओर। * संसार (नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवगति रूप संसार) से प्रतिक्रमण / स्थानांग सूत्र में इन्हीं विषयों के आधार पर प्रतिक्रमण के पांच भेद किए गए हैं१. आश्रव प्रतिक्रमण-प्राणातिपात आदि आस्रवों से प्रतिनिवृत्त होना। यह असंयम से संयम की ओर प्रतिक्रमण करने का संवादी है। 2. मिथ्यात्व प्रतिक्रमण-आभिग्रहिक आदि मिथ्यात्व से प्रतिक्रमण। 3. कषाय प्रतिक्रमण-क्रोध, मान, माया और लोभ से प्रतिक्रमण। 4. योग प्रतिक्रमण-मन, वचन और काय की अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्ति / 1. मूलाटी पृ. 103, 104 / 4. आव 4/8/ 2. कपा 1/1 पृ. 113, 114 / / 5. आवनि 841, 842 / 3. भआविटी पृ. 381 / ६.स्था 5/222 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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