________________ देवकुरू-उत्तरकुरू क्षेत्र मेरूपर्वत के दक्षिण में निषध पर्वत के पास दो गजदन्त पर्वतों के बीच में 'देवकुरू' नाम से अकर्मभूमिक क्षेत्र है तथा देवकुरू क्षेत्र के ठीक सामने मेरूपर्वत के उत्तर में, नीलवन्त पर्वत के पास, दो गजदन्त पर्वतों के बीच में उत्तरकुरू' नाम का क्षेत्र है। ये दोनों क्षेत्र पूर्व-पश्चिम लम्बे और उत्तर-दक्षिण चौड़े हैं। ये अर्द्धचन्द्र की आकृति के हैं। इनकी उत्तरवर्ती जीवा पूर्व-पश्चिम वक्षस्कार पर्वत का स्पर्श करती है। वह 53,000 योजन लम्बी है, 11,842 योजन 2 कलां अधिक चौड़ी है। दक्षिण में उसके धनुपृष्ठ की परिधि 60,418 योजन 12 कलां की है। यहाँ युगलिक मनुष्य एवं तिर्यंचों का निवास है। अकर्मभूमि के सभी क्षेत्रों में ये दोनो विशिष्ट क्षेत्र हैं। यहाँ 3 पल्योपम की आयुष्य एवं 3 कोस की अवगाहना वाले अतीव पुण्यशाली, शुभवर्णादि युक्त, यौगलिक मनुष्य निवास करते है। यहाँ सदा 'सुषम-सुषमा' जैसा काल है। कहा जाता है भगवान ऋषभदेव के लिये देवता देवकुरू-उत्तरकुरू के कल्पवृक्षों से ही फल लाकर देते थे। युगलपर्वत-उत्तरकुरू क्षेत्र में नीलवंत वर्षधर पर्वत से 834" योजन दक्षिण में सीता नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर 'यमक-समक' नामक दो पर्वत हैं। वे 1,000 योजन ऊँचे, 250 योजन जमीन में गहरे, मूल में 1,000 योजन चौड़े, मध्य में 750 योजन तथा ऊपर 500 योजन चौड़े हैं। इनकी परिधि मूल में कुछ अधिक 3,162 योजन चौड़े, मध्य में कुछ अधिक 2,372 योजन एवं ऊपर कुछ अधिक 1,581 योजन है। ये स्वर्ण के समान पीले और यमक पक्षियों के समान संस्थान वाले हैं मानों ये दोनो एक साथ उत्पन्न दो भाई हों। यहाँ दो-दो कोश ऊँची और 500-500 धनुष चौड़ी एक-एक पद्मवरवेदिका तथा एक-एक वनखण्ड है। प्रत्येक वनखण्ड के मध्य साढ़े 62 योजन ऊँचा, 31 योजन एक कोश का लम्बा-चौड़ा एक-एक उत्तम प्रसाद हैं, वहाँ 'यमक-समक' नाम के दो परम ऋद्धिशाली देव अपने परिवार के साथ रहते हैं। इनकी राजधानी मेरू पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बूद्वीप में 12 हजार योजन आगे जाने पर आती है। इसी प्रकार देवकुरू क्षेत्र में भी शीतोदा प्रपातकुण्ड के दोनों ओर 'चित्र-विचित्र' नामक ऐसे ही दो पर्वत हैं। उनका वर्णन 'यमक-समक' पर्वत के समान है। देवकुरू के अधिष्ठायक देव चित्र एवं विचित्र हैं। देवकुरू-उत्तरकुरूक्षेत्र के दस द्रह-निषध पर्वत से 834" योजन उत्तर में देवकुरू क्षेत्र के मध्यभाग में शीतोदा महानदी के ठीक मध्यभाग में पाँच द्रह सरोवर हैं-(1) निषधद्रह, (2) देवकुरू द्रह, (3) सुरप्रभद्रह,(4) सुलस द्रह,(5) विद्युत्प्रभ द्रह। ___ इसी प्रकार नीलवंत पर्वत से 834" योजन दक्षिण में उत्तरकुरू में सीता महानदी के ठीक मध्यभाग में भी पाँच द्रह है-(1) नीलवंत द्रह,(2) उत्तरकुरू द्रह,(3) चन्द्रद्रह,(4) ऐरावत द्रह, (5) माल्यवंत द्रह। ये दसों द्रह 'पद्मद्रह' के समान 1,000 योजन लम्बे, 500 योजन चौड़े और 10 योजन गहरे हैं। प्रत्येक द्रह में छह-छह कमल वलय हैं। इन द्रहों को भेदकर ही शीतोदा और सीता महानदी आगे जाती है। कंचनगिरी पर्वत-इन द्रहों के आस-पास 10-10 कंचनगिरी पर्वत है। स्वर्ण के होने कारण इन्हें 'कंचनगिरि' कहते हैं। ये दस-दस पूर्व में और दस-दस पश्चिम में है। इस प्रकार कुल 20-20 पर्वत है। 72 सचित्र जैन गणितानुयोग