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________________ महाविदेह के चार मुखवन पश्चिम निषध पर्वत दक्षिणवर्ती सीतोदा मुखवन सीतोदा नदी -2922 यो नीलवान पर्वत उत्तरवर्ती सीतोदा मुखवन 16592 यो.2 कला 25वीं वप्रा विजय 24वीं नलिनावती विजय उत्तर मेरू 8वीं पुष्कलावती विजय दक्षिण 9वीं वत्स विजय 16592 यो.2 कलां दक्षिणवर्ती सीता मुखवन : उत्तरवर्ती सीता 2922 यो. सीता नदी मुखवन पूर्व चित्र क्र.48 उसके पास ‘फेनमालिनी नदी' है। 5. वल्गु विजय-यह 29वीं विजय है, इसकी राजधानी 'चक्रपुरा' है। उसके पास 'नागकूट वक्षस्कार' है। 6. सुवल्गु विजय-यह 30वीं विजय है, इसकी राजधानी खड्गी' है। इसके पास 'गम्भीरमालिनी नदी' है। 7. गन्धिला विजय-इसकी राजधानी 'अवध्या' है। इसके पास 'देवकूट वक्षस्कार' है। 8. गंधिलावती विजय-यह महाविदेह की 32वीं विजय कहलाती है। अयोध्या इसकी राजधानी है। इसके पास मेरूपर्वत का 'भद्रशाल वन' और 'गन्धमादन पर्वत' है। - जंबूद्वीप की इन 32 विजयों में से आठवीं पुष्कलावती विजय में श्री सीमंधर स्वामी, पच्चीसवीं वप्रा विजय में श्री युगमंधर स्वामी, नौवीं वत्सविजय में श्री बाहु स्वामी और चौबीसवीं नलिनावती विजय में श्री सुबाहुस्वामी-इस प्रकार क्रम से चार विहरमान वर्तमान में विचरण कर रहे हैं। अपनी अपेक्षा से श्री सीमंधर स्वामी ईशानकोण में हैं अत: हम उन्हें ईशान कोण में वंदन करते हैं। _ पश्चिम महाविदेह की भूमि अनादि से क्रमिक नीचे गई है। मेरु के पास से प्रारम्भ होकर पश्चिम की ओर जाते हुए जगती के नजदीक 24वीं सलिलावती और 25वीं वप्रा विजय के अंतिम कई ग्राम 1,000 योजन तक नीचे गये हैं, उन्हें अधोलोक' के ग्राम, नगर, नदी, पर्वत आदि कहा जाता है। सीतोदा नदी भी क्रमशः 1,000 योजन नीचे बहती हुई जगती के अधोभाग को भेदकर समुद्र में मिलती है। सचित्र जैन गणितानुयोग 71
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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